धाम यात्रा

अमरनाथ गुफा

हिमालय की गोद में स्थित श्रीनगर से करीब 135 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है अमरनाथ गुफा की समुद्र तल सें ऊँचाई 16, 600 फुट है। अमरनाथ गुफा की लम्बाइ 19 मीटर व चौडाई 16 मीटर है जबकि ऊँचाई 11 मीटर हैं। अमरनाथ गुफा की परिधि लगभग 150 फुट हैं।  यहॉ की विषेशता पवित्र गुफा में हिमलिंग का निर्मित होना है। इस गुफा के चारो तरफ बर्फीली पहाड़ियाँ है।

अमरनाथ गुफा ज्यादातर समय पूरी तरह से बर्फ से ढंकी हुई होती है और साल में एक बार इस गुफा को श्रद्धालुओ के लिये खोला जाता है। हजारो लोग रोज़ अमरनाथ बाबा के दर्शन के लिये आते है इस पवित्र गुफा में भगवान शंकर ने भगवती पार्वती को तत्वज्ञान मोक्ष का मार्ग दिखाया था।

ऐतिहासिक मान्यताएं –

शिवलिंग का निर्मित होना समझ में आता है, लेकिन इस पवित्र गुफा में हिम शिवलिंग के साथ ही एक गणेश पीठ व एक पार्वती पीठ भी हिम से प्राकृतिक रूप में निर्मित होता है। पार्वती पीठ ही शक्तिपीठ स्थल है। पार्वती पीठ 51 शक्ति पीठों में से एक है। कहते हैं कि यहां सती का कंठ भाग गिरा था।यहां माता के अंग तथा अंगभूषण की पूजा होती है। ऐसे बहुत से तीर्थ हैं, जहां प्राचीनकाल में सिर्फ साधु-संत ही जाते थे और वहां जाकर वे तपस्या करते थे। लेकिन आजकल यात्रा सुविधाएं सुगम होने के चलते व्यक्ति कैलाश पर्वत और मानसरोवर भी जाने लगा है।
रजतरंगिनी किताब में भी इसे अमरनाथ अमरेश्वर नाम दिया गया है। कहा जाता है की 11 वी शताब्दी में रानी सुर्यमठी ने त्रिशूल, और दुसरे पवित्र चिन्ह मंदिर में भेट स्वरुप दिये थे।

गुफा की खोज किसने की –

इस पवित्र गुफा की खोज के बारे में पुराणों में भी एक कथा प्रचलित है कि एक बार एक गड़रिये को एक साधू मिला, जिसने उस गड़रिये को कोयले से भरी एक बोरी दी जिसे गड़रिया अपने कंधे पर लाद कर अपने घर को चल दिया। घर आकर उसने बोरी खोली तो वह आश्चर्यचकित हुआ क्योंकि कोयले की बोरी अब सोने के सिक्कों की हो चुकी थी। इसके बाद वह गड़रिया साधू से मिलने व धन्यवाद देने के लिए उसी स्थान पर गया जहां पर साधू से मिला था। परन्तु वहां उसे साधू नहीं मिला बल्कि उसे ठीक उसी जगह एक गुफा दिखाई दी। गड़रिया जैसे ही उस गुफा के अंदर गया तो उसने वहां पर देखा कि भगवान भोले शंकर बर्फ के बने शिवलिंग के आकार में स्थापित थे। उसने वापस आकर सबको यह कहानी बताई और इस तरह भोले बाबा की पवित्र अमरनाथ गुफा की सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाध में खोज हुई। आज भी चौथाई चढ़ावा मुसलमान गड़रिए के वंशजों को मिलता है। यह एक ऐसा तीर्थस्थल है, जहां फूल-माला बेचने वाले मुसलमान होते हैं। लोग यह भी कहते है कि वह गुज्जर समाज का एक गडरिया था, जिसे बूटा मलिक कहा जाता है।

अमरकथा सुन संत सुखदेव जी अमर हो गये थे –

एक बार भगवान शिव मृगछाला पर विराजमान संघ्याकालीन नित्या मे लीन थे। माता पार्वती नीलकंठ के सौम्य रूद्र रूप ललाट पर सुभोशित चन्द्रमा गले मे रूद्र वृक्ष के फलों से निर्मित रूद्राक्ष की माला, शेषनाग, त्रिशूल,भगवान के गले मुंड माला देख अचंभित हो उठी। उनके मन में अनेक मनोचित में अनेक प्रश्न उठे। उन्होने भगवान शिव से मुंड माला धारण करने का रहस्य पूछा। भगवान शिव ने बताया कि मानव शरीर  नाशवान हैं। आपकी मृत्यु होती है जितनी बार तुम्हारा जन्म हुआ है उतने ही मुंड मैंने धारण किए हैं ।पार्वती बोली, ‘मेरा शरीर नाशवान है, मृत्यु को प्राप्त होता है, परंतु आप अमर हैं, मुझे हर जन्म के बाद नए स्वरूप में आकर फिर से वर्षो की कठोर तपस्या के बाद आपको प्राप्त करना होता है।जब मुझे आपको प्राप्त करना है तो फिर मेरी यह तपस्या क्यूं इतनी कठोर परीक्षा क्यूं भगवन कृपा कर मुझे अमर होने का मार्ग बताए भगवान शंकर ने कहा, यह सब साधना ओर अमर कथा से सम्भब है पार्वतीजी ने शिवजी से कथा सुनाने का आग्रह किया।

बहुत वर्षों तक भगवान शंकर ने इसे टालने का प्रयास किया, लेकिन जब पार्वती की जिज्ञासा बढ़ गई तब उन्हें लगा कि अब कथा सुना देना चाहिए। भगवान शंकर गुप्त स्थान पर अमर कथा सुनाने को राजी हुए, क्यूंकि अमर कथा को कोई भी जीव, व्यक्ति और यहां तक कोई पशु-पक्षी न सुन लें,शिव जी मां पार्वती को एकांत में कैलाश पर्वत पर ले गये। जाते समय सर्वप्रथम भगवान भोले ने अपनी सवारी नंदी (बैल) को पहलगाम पर छोड़ दिया, इसलिए इस जगह का नाम बैल गाँव पडा जो बाद में पहलगॉव कहलाने लगा बाबा अमरनाथ की यात्रा पहलगाम से शुरू होती है। तत्पश्चात चंदनवाड़ी में उन्होंने अपनी जटा (केशों) से चंद्रमा को व माथे के चंदन  को मुक्त किया। अनंतनाग शिव जी नें इस स्थान पर अपने नाग छोडे थे इसलिए इस जगह का नाम अनंतनाग पड गया।

महागुणा का पर्वत स्थान पर अपने पुत्र गणेश को भी छोड़ दिया था, जिसको गणेश टाप भी कहा जाता है। पिस्सू घाटी में पिस्सू नामक कीड़े को भी त्याग दिया। पंचतरणी में पहुंचकर भगवान शिव नें गंगा जी को त्याग दिया पंचतरणी के सम्बन्ध में ये भी कहा जाता है की भगवान शिव यहां ताडव नृत्य कर रहे थे तभी उनकी जटायें ढीली पड गयी और उसमें से माँ गंगा निकली जो पाँच धाराओ में बट गयी थी। आज भी पाँच धाराओं की गंगा आपकों यहाँ देखने को मिलती हैं। कहा जाता हैं पंचतरिणी में स्नान करनें से शिवधाम की प्राप्ति होती हैं।

पंचतरिणी मे ही भगवान शिव नें पंचतत्व अग्नि,  जल,  वायु,  पृथ्वी और नभ का परित्याग किया था। इसके साथ ओर फिर उन्होंने कालागणी रूद्र नामक गण को प्रकट किया और आदेश दिया कि गुफा के आस-पास कोई भी सांसारिक प्राणी नहीं रहना चाहिए।आदेशानुसार गण नें समस्त जीवधारी प्राणियों को खत्म कर दिया। परन्तु दुर्भाग्य से गुफा के अंदर एक कबुतर के अुडे पर उसका प्रभाव नहीं पडा क्योंकि वह उस समय जीवधारी नहीं था।

मां पार्वती संग एक गुप्त गुफा में प्रवेश कर गए। शिव जी ने अपने चमत्कार से गुफा के चारों ओर आग प्रज्जवलित कर दी। फिर भगवान माता पार्वमी को कथा सुनाने लगें । निश्चित समयानुसार कबुतर के अण्डे से एक कबुतर का जन्म हुआ। अमर कथा माता पार्वती और कबुतर दोनो सुन रहे थे। माता पार्वती कथा सुनने का प्रमाण हुंकार के साथ दे रहीं थी। धीरे धीरे माता पार्वती को निद्रा ने घेर लिया। माता पार्वती को निद्रा मे देख कबुतर प्रत्येक वाक्य के अंत में हुंकारी देने लगा। भगवान शिव नेत्र मुंद ध्यान मग्न हो कर अमरकथा सुना रहे थे। कथा समाप्त होने पर  भगवान शिव ने माता पार्वती को निद्रा मे देखा।भगवान शिव को संदेह हो गया कि कथा सुनने वाला संसारिक प्राणी है। भगवान शिव के आक्रोश पर मृत्यु से भयभीत होकर कबूतर प्राण रक्षा के लिए गुफा सें भागा । कबुतर को तीनों लोक में कही छिपने का स्थान नहीं मिला। भय से व्याकुल कबुतर की नजर ऑगन में बैठी जमांही ले रहीं व्यासदेव की पत्नी पर पडी। अंततः वह व्यास देव की पत्नी के मुख के रास्ते पेट में प्रवेश कर गया। व उनके गर्भ में रह गया। ऐसा कहा जाता है भगवान शिव का क्रोध और गर्जन सुन व्यास देव और उनकी पत्नी घर से बाहर आयें। भगवान शिव ने पूछा कोई चोर उनके घर के अंदर तो नहीं गया। सत्य से अज्ञात व्यास देव ने बताया  उन्होने किसी भी चोर को घर के अंदर प्रवेश करते हुय नहीं देखा। व्यास देव जी की पत्नी बोली थोड़ी देर पूर्व जमाहीं लेते हुए उन्हें ऐसा प्रतीत हुए कि कोई कबुतर उनके मुख के रास्ते पेट में प्रवेश कर गया है। भगवान शिव ने बताया की कबुतर ही उनका चोर है। भगवान शिव ने कबुतर को मारने का भाव प्रकट किया। पत्नी के मृत्यु से भयभित व्यास देव शिव जी से बोले कि स्त्री हत्या पाप है ।  व्यास देव की बात सुनकर शिव जी का मन करूणा से भर गया।और उन्होनें शीघ्र कैलाश पर्वत जाने का निर्णय लिया। 12 वर्ष तक गर्भ के बाहर ही नहीं निकले। व्यास देव जी की पत्नी के उदर में पीडा होने लगी। जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर इन्हंी आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा, तभी ये गर्भ से बाहर निकले मानव रूप् में जन्म लिया।और व्यासजी के पुत्र कहलाए। अमरकथा सुनकर ज्ञानी और महापंडित हो गए गर्भ में ही इन्हें वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान हो गया था। जन्मते ही श्रीकृष्ण और अपने माता-पिता को प्रणाम करके इन्होंने तपस्या के लिए जंगल की राह ली। यही जगत में शुकदेव मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुए।

अमर कबूतर –

कथा सुनाते समय कबूतर कथा सुन रहे थे इस तरह दोनों कबूतरों ने अमर होने की पूरी कथा सुन ली। कथा समाप्त होने पर शिव का ध्यान पार्वती मां की ओर गया जो सो रही थी। तब महादेव की दृष्टि कबूतरों पर पड़ी। महादेव शिव कबूतरों पर क्रोधित हुए और उन्हें मारने के लिए तत्पर हुए। इस पर कबूतरों ने शिव जी से कहा कि हे प्रभु हमने आपसे अमर होने की कथा सुनी है, यदि आप हमें मार देंगे तो अमर होने की यह कथा झूठी हो जाएगी।

इस पर शिव जी ने कबूतरों को जीवित छोड़ दिया और उन्हें आर्शीवाद दिया कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव पार्वती के प्रतीक चिन्ह के रूप में निवास करोगे। अत: यह कबूतर का जोड़ा अजय अमर हो गया। माना जाता है कि आज भी इन कबूतरों का दर्शन भक्तों को यहां प्राप्त होता है। इस तरह से यह गुफा अमर कथा की साक्षी हो गई व इसका नाम अमरनाथ गुफा पड़ा।
 
एक और मान्यता –

इस कथा के अनुसार एक समय महादेव संध्या के समय नृत्य कर रहे थे कि भगवान शिव के गण आपस में ईर्ष्या के कारण ‘कुरु-कुरु’ शब्द करने लगे। महादेव ने उनको श्राप दे दिया कि तुम दीर्घकाल तक यह शब्द ‘कुरु-कुरु’ करते रहो। तदुपरांत वे रुद्ररूपी गण उसी समय कबूतर हो गए और वहीं उनका स्थायी निवास हो गया।

माना जाता है कि यात्रा के दौरान पावन अमरनाथ गुफा में इन्हीं कबूतरों के भी दर्शन होते हैं। यह आश्चर्य ही है कि जहां ऑक्सीजन की मात्रा नहीं के बराबर है और जहां दूर-दूर तक खाने-पीने का कोई साधन नहीं है, वहां ये कबूतर किस तरह रहते होंगे?


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