सिख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक देव का जन्म 15 अप्रैल, 1469 में ‘तलवंडी’ नामक स्थान पर हुआ था। नानक जी के पिता का नाम कल्यानचंद या मेहता कालू जी और माता का नाम तृप्ता था। नानक जी के जन्म के बाद तलवंडी का नाम ननकाना पड़ा। वर्तमान में यह जगह पाकिस्तान में है। उनका विवाह नानक सुलक्खनी के साथ हुआ था। इनके दो पुत्र श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द थे। उन्होंने कर्तारपुर नामक एक नगर बसाया, जो अब पाकिस्तान में है। इसी स्थान पर सन् 1539 को गुरु नानक जी का देहांत हुआ था।
गुरु नानक की पहली ‘उदासी’ (विचरण यात्रा ) 1507 ई . में 1515 ई . तक रही। इस यात्रा में उन्होंने हरिद्वार , अयोध्या, प्रयाग, काशी, गया, पटना, असम, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, सोमनाथ, द्वारका, नर्मदातट, बीकानेर, पुष्कर तीर्थ, दिल्ली, पानीपत, कुरुक्षेत्र, मुल्तान, लाहौर आदि स्थानों में भ्रमण किया।
गुरु अंगद देव सिखों के दूसरे गुरु थे। गुरु नानक देव ने अपने दोनों पुत्रों को छोड़कर उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया था। उनका जन्म फिरोजपुर, पंजाब में 31 मार्च, 1504 को हुआ था। इनके पिता का नाम फेरू जी था, जो पेशे से व्यापारी थे। उनकी माता का नाम माता रामो जी था। गुरु अंगद देव को ‘लहिणा जी’ के नाम से भी जाना जाता है। अंगद देव जी पंजाबी लिपि ‘गुरुमुखी’ के जन्मदाता हैं।
गुरु अंगद देव का विवाह खीवी नामक महिला से हुआ था। इनकी चार संतान हुई, जिनमें दो पुत्र और दो पुत्री थी। उनके नाम दासू व दातू और दो पुत्रियों के नाम अमरो व अनोखी थे। वह लगभग सात साल तक गुरु नानक देव के साथ रहे और फिर सिख पंथ की गद्दी संभाली। वह सितंबर 1539 से मार्च 1552 तक गद्दी पर आसीन रहे। गुरु अंगद देव जी ने जात -पात के भेद से हटकर लंगर प्रथा चलाई और पंजाबी भाषा का प्रचार शुरू किया।
गुरु अंगद देव के बाद गुरु अमर दास सिख धर्म के तीसरे गुरु हुए। उन्होंने जाति प्रथा, ऊंच -नीच , कन्या -हत्या , सती प्रथा जैसी कुरीतियों को समाप्त करने में अहम योगदान किया। उनका जन्म 23 मई, 1479 को अमृतसर के एक गांव में हुआ। उनके पिता का नाम तेजभान एवं माता का नाम लखमी था। उन्होंने 61 साल की उम्र में गुरु अंगद देव जी को अपना गुरु बनाया और लगातार 11 वर्षों तक उनकी सेवा की। उनकी सेवा और समर्पण को देखते हुए गुरु अंगद देव जी ने उन्हें गुरुगद्दी सौंप दी। गुरु अमर दास का 1 सितंबर, 1574 में निधन हो गया।
गुरु अमरदास जी ने सिख धर्म को हिंदू धर्म की कुरीतियों से मुक्त किया। उन्होंने अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा दिया और विधवाओं के पुनर्विवाह की अनुमति दी। उन्होंने सती प्रथा का घोर विरोध किया।
गुरु अमरदास के बाद गद्दी पर गुरु रामदास बैठे। वह सिख धर्म के चौथे गुरु थे। इन्होंने गुरु पद 1574 ई . में प्राप्त किया था। इस पद पर ये 1581 ई . तक बने रहे। ये सिखों के तीसरे गुरु अमरदास के दामाद थे। इनका जन्म लाहौर में हुआ था। जब गुरु रामदास बाल्यावस्था में थे, तभी उनकी माता का देहांत हो गया था। लगभग सात वर्ष की आयु में उनके पिता का भी निधन हो गया। उसके बाद वह अपनी नानी के साथ रहने लगे थे। गुरु रामदास की सहनशीलता, नम्रता व आज्ञाकारिता के भाव देखकर गुरु अमरदास जी ने अपनी छोटी बेटी की शादी इनसे कर दी।
गुरु रामदास ने 1577 ई . में ‘अमृत सरोवर’ नामक एक नगर की स्थापना की थी, जो आगे चलकर अमृतसर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गुरु रामदास बड़े साधु स्वभाव के व्यक्ति थे। इस कारण सम्राट अकबर भी उनका सम्मान करता थे। गुरु रामदास के कहने पर अकबर ने एक साल पंजाब से लगान नहीं लिया था।
गुरु अर्जन देव सिखों के पांचवें गुरु हुए। उनका जन्म 25 अप्रैल, 1563 में हुआ था। वह सिख धर्म के चौथे गुरु राम दास देव जी के पुत्र थे। ये 1581 ई . में गद्दी पर बैठे। सिख गुरुओं ने अपना बलिदान देकर मानवता की रक्षा करने की जो परंपरा स्थापित की , उनमें सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव का बलिदान महान माना जाता है।
उन्होंने ‘अमृत सरोवर’ का निर्माण कराकर उसमें ‘हरमंदिर साहब’ (स्वर्ण मंदिर ) का निर्माण कराया , जिसकी नींव सूफी संत मियां मीर के हाथों से रखवाई गई थी। इनकी मृत्यु 30 मई 1606 को हुई थी।
गुरु हरगोबिन्द सिंह सिखों के छठे गुरु थे। यह सिखों के पांचवें गुरु अर्जन देव के पुत्र थे। गुरु हरगोबिन्द सिंह ने ही सिखों को अस्त्र -शस्त्र का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रेरित किया व सिख पंथ को योद्धा चरित्र प्रदान किया। वे स्वयं एक क्रांतिकारी योद्धा थे। इनसे पहले सिख पंथ निष्क्रिय था। सिख धर्म के पांचवें गुरु अर्जन को फांसी दिए जाने के बाद उन्होंने गद्दी संभाली। उन्होंने एक छोटी -सी सेना इकट्ठी कर ली थी। इससे नाराज होकर जहांगीर ने उनको 12 साल तक कैद में रखा। रिहा होने के बाद उन्होंने शाहजहां के खिलाफ़ बगावत कर दी और 1628 ई . में अमृतसर के निकट संग्राम में शाही फौज को हरा दिया। सन् 1644 ई . में कीरतपुर , पंजाब में उनकी मृत्यु हो गई।
गुरु हरराय का सिख के सातवें गुरु थे। उनका जन्म 16 जनवरी, 1630 ई . में पंजाब में हुआ था। गुरु हरराय जी सिख धर्म के छठे गुरु के पुत्र बाबा गुरदिता जी के छोटे बेटे थे। इनका विवाह किशन कौर जी के साथ हुआ था। उनके दो पुत्र गुरु रामराय जी और हरकिशन साहिब जी थे। गुरु हरराय ने मुगल शासक औरंगजेब के भाई दारा शिकोह की विद्रोह में मदद की थी। गुरु हरराय की मृत्यु सन् 1661 ई . में हुई थी।
गुरु हरकिशन साहिब सिखों के आठवें गुरु हुए। उनका जन्म 17 जुलाई, 1656 को किरतपुर साहेब में हुआ था। उन्हें बहुत छोटी उम्र में गद्दी प्राप्त हुई थी। इसका मुगल बादशाह औरंगजेब ने विरोध किया। इस मामले का फैसला करने के लिए औरंगजेब ने गुरु हरकिशन को दिल्ली बुलाया।
गुरु हरकिशन जब दिल्ली पहुंचे, तो वहां हैजे की महामारी फैली हुई थी। कई लोगों को स्वास्थ्य लाभ कराने के बाद उन्हें स्वयं चेचक निकल आई। 09 अप्रैल 1664 को मरते समय उनके मुंह से ‘बाबा बकाले’ शब्द निकले, जिसका अर्थ था कि उनका उत्तराधिकारी बकाला गांव में ढूंढा जाए। साथ ही गुरु साहिब ने सभी लोगों को निर्देश दिया कि कोई भी उनकी मृत्यु पर रोयेगा नहीं।
गुरु तेग बहादुर सिंह का जन्म 18 अप्रैल, 1621 को पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था। वह सिखों के नौवें गुरु थे। वह सिख धर्म के छठें गुरु हरगोबिंद सिंह और माता नानकी जी के पुत्र थे। गुरु तेग बहादर सिंह ने धर्म की रक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया और सही अर्थों में ‘हिन्द की चादर’ कहलाए। उस समय मुगल शासक जबरन लोगों का धर्म परिवर्तन करवा रहे थे। इससे परेशान होकर कश्मीरी पंडित गुरु तेग बहादुर के पास आए और उन्हें बताया कि किस प्रकार इस्लाम को स्वीकार करने के लिए अत्याचार किया जा रहा है। इसके बाद उन्होंने पंडितों से कहा कि आप जाकर औरंगजेब से कह दें कि यदि गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया तो उनके बाद हम भी इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे और यदि आप गुरु तेग बहादुर जी से इस्लाम धारण नहीं करवा पाए तो हम भी इस्लाम धर्म धारण नहीं करेंगे। औरंगजेब ने यह स्वीकार कर लिया।
वे औरंगजेब के दरबार में गए। औरंगजेब ने उन्हें तरह -तरह के लालच दिए , पर गुरु तेग बहादुर जी नहीं माने तो उन पर ज़ुल्म किए गए, उन्हें कैद कर लिया गया, दो शिष्यों को मारकर गुरु तेग बहादुर जी को डराने की कोशिश की गई, पर वे नहीं माने। इसके बाद उसने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेग बहादुर जी का शीश काटने का हुक्म जारी कर दिया और गुरु जी ने 24 नवंवर, 1675 को धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दे दिया।
गुरु गोबिन्द सिंह सिखों के दसवें और देहधारी अंतिम गुरु माने जाते हैं। उनका जन्म 22 दिसंबर, 1666 ई . को पटना में हुआ था। वह नौवें गुरु तेग बहादुर जी के पुत्र थे। उनको 9 वर्ष की उम्र में गुरुगद्दी मिली थी। गुरु गोबिन्द सिंह के जन्म के समय देश पर मुगलों का शासन था।
गुरु गोबिन्द सिंह ने धर्म, संस्कृति व राष्ट्र की आन -बान और शान के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था। उनके बड़े पुत्र बाबा अजीत सिंह और एक अन्य पुत्र बाबा जुझार सिंह ने चमकौर के युद्ध में शहादत प्राप्त की थी। जबकि छोटे बेटों में बाबा जोरावर सिंह और फतेह सिंह को नवाब ने जिंदा दीवारों में चुनवा दिया था।
बाद में गुरु गोबिन्द सिंह ने गुरु प्रथा समाप्त कर गुरु ग्रंथ साहिब को ही एकमात्र गुरु मान लिया।
सारे गुरुओं के जन्म की तारीख जन्म स्थान माता पिता और संतानों का नाम जानना अति आवश्यक है जो कि इस लेख पूरा नहीं मिलता है।
गुरु तेगबहादुर जी का जन्म अगर पंजाब के अमृतसर में हुआ था तो,
गुरुगोविंद जी का जन्म बिहार के पटना में हुआ,, क्या गुरु तेगबहादुर जी पंजाब से माइग्रेशन करके बिहार में बस गये थे क्या,, तभी तो गुरु गोविंद सिंह बिहार में पैदा हुए
बिहार में बसना जरूरी तो नहीं है परिवार के साथ भ्रमण पर भी जा सकते हैं कोई काम से भी जा सकते हैं जब उनके संतान का जन्म हुआ हो तब्बू परिवार के साथ बिहार में ही थे
मैं एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक का कार्य करता हूं मुझे अफसोस है कि आज की पीढ़ी इन गुरुओं के बलिदानों को भूलती जा रही है मैं आपसे निवेदन करता हूं किजितने भी गुरुओं को जन्मदिन का बलिदान दिवस आते हैं उनका स्कूलों में बच्चों के द्वारा विचार गोष्ठी आयोजित की जाए ताकि हमारे बच्चे अधिक से अधिक इन गुरु के बारे जान सके
Guru gobind singh g ne guru pratha band kyu krdi
Guru teg Bahadur ke bare mein aapko kya kya pata hai unke bare mein detail dijiye Puri
जब गुरु तेग बहादुर जी सिक्खों के गुरु बने तब उनकी उम्र कितनी थी
जब गुरु हरकिशन साहिब जी ने कहा था कि मेरा उतराधिकारी बकाला गांव में ढुंढा जाते तो गुरु तेग बहादुर जी सिक्खों के गुरु कैसे बने ्््््््््््््््््््््््््््््
इसका बड़ा ही रोचक जवाब है। एक बार की बात है कि एक यूनानी व्यापारी भारत में व्यापार करके समुद्री मार्ग से वापस यूनान जा रहा था तो मार्ग में उसकी नाव और सामान व संपत्ति सब कुछ डूबने लगा तो उसने प्रार्थना की कि यदि गुरु की कृपा हो और मेरी नाव सुरक्षित वापस बंदरगाह के किनारे लग जाए तो मैं अपनी कुछ ₹200 स्वर्ण मुद्राओं की मदद गुरु परंपरा को करूंगा। जब उसकी नाव सुरक्षित बंदरगाह के किनारे लग गई और वह अपने यूनान देश पहुंच गया अगली बार जब वह 5 साल बाद हिंदुस्तान आया तो उसने देखा कि यहां गुरु हरकिशन जी तो 5 साल पहले मर गए हैं लेकिन जैसा कि उसने नाव को सुरक्षित वापस पहुंचने के लिए 200 स्वर्ण मुद्राएं दान देने का विचार किया था वह उनकी खोज में जब जहां जहां पहुंचा तो प्रत्येक व्यक्ति अपने को उत्तराधिकारी बताने लगा और इस तरह वह जहां जहां जाते वहां वहां उनको कुछ 5-10 स्वर्ण मुद्राएं देकर लौट आते, और ऐसा करते करते उन्हें कोई यथेष्ट गुरु नहीं मिला किसी ने उन्हें बाबा बकाला के बारे में बताया तो जैसे ही व्यापारी बाबा बकाला, जो गुरु तेग बहादुर जी थे उनके पास पहुंचे और उन्होंने उनको भेंट स्वरूप उन्हें भी 5-10 स्वर्ण मुद्राएं भेंट की तो गुरु तेग बहादुर जी ने उनको तुरंत कहा कि हमारी आपकी बात तो 200 मुद्राओं की हुई थी यह बात सुनकर वह अचंभित रह गया और कहने लगा “गुरु लाधौ रे” गुरु लाधौ रे जिसका पंजाबी में अर्थ होता है गुरु मिल गए, गुरु मिल गए और इस तरह उन्हें 9 में गुरु के रूप में सर्व स्वीकृति मिली।
गुरु ग्रंथ साहिब किस गुरु ने लिखा ??
6 num Shri guru sahib g Ki Detail me likha hai ki 5th guru Shri Guru Arjun dev ji Ko Fansi hui jabki unko fansi Nhi Hui Thi Unko tattti Tawi Par Bithaya gya Tha aur shaheed kiya gya tha,app logo Ko galt Jankaari de rahe Apni jankaari sahi kro
Unhe Fanshi hui thi..jahagir ne di thi becoz unhone jahgir ke bagawat krne wale bete k sath diya tha
10 गुरुओं मे हिन्दू कौन कौन से थे
वैसे तो सभी हिंदू थे ,पर गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा सिख़ धर्म की स्थापना के बाद के गुरु अपने नाम साथ सिंह लगाने लगे ।
Singh koi jaati nahi hai Ye ek Upaadhi padvi hai शेर एक उर्दू शब्द है उसे हिन्दी मे सिंह ही कहते है
To ye to logo ne singh lgaya guruon ne nhi kabhi singh lgaya
गुरु अर्जन देव सिखों के पांचवें गुरु हुए। उनका जन्म 15 अप्रैल, 1563 में हुआ था। वह सिख धर्म के चौथे गुरु गुरु अर्जन देव देव जी के पुत्र थे।
इसमें गुरु अर्जुन देव जी के पिता का नाम सही कर दें।
नौंवे गुरू गुरु तेगबहादुर जी के माता-पिता के नाम का उल्लेख भी नहीं किया है। जोड दें तो अच्छा रहेगा।
दसवें गुरू गोबिन्द सिंह जी को सिखों के अंतिम गुरु की जगह देहधारी अंतिम गुरू लिखें तो ठीक रहेगा।क्योंकि सिख धर्म भी आज भी श्री गुरु ग्रन्थ साहिब को सिखों के प्रत्यक्ष व वर्तमान गुरु का दर्जा हासिल है। पूर्ण सिख समाज श्री गुरू ग्रन्थ साहिब को अपना गुरू मान उसकी अराधना करता है। प्रत्येक गुरूघर व अखंड पाठ व अन्य सिख धर्म समागमों में यही श्लोक गूंजता है “गुरु ग्रन्थ को मानियो प्रत्यक्ष गुरां की देह”।
रजिन्द्र बंसल अबोहर 7719775608
गुरु अर्जन देव सिखों के पांचवें गुरु हुए। उनका जन्म 15 अप्रैल, 1563 में हुआ था। वह सिख धर्म के चौथे गुरु गुरु अर्जन देव देव जी के पुत्र थे। ये 1581 ई . में गद्दी पर बैठे।
दसवें गुरु से पहले किसी भी गुरु के नाम के पीछे “सिहं ” नहीँ था। कृपया सुधार करें ।
To bhai ve Singh nhi the ram ka naam jpne vale hindu the
यह कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र की धरती पर सिक्खों के दस में से आठ गुरु अपनी संगत सहित आए थे लेकिन किस समय यह यहाँ आए ऐसा कोई वर्णन यहाँ के गुरुद्वारों में वर्णित नहीं है और जो थोडा बहुत है वह केवल कहानियों के माध्यम से है जिसमे स्पष्टता नहीं है क्या कहीं इस बात का उल्लेख आता है कि कौन कौन से गुरु कुरुक्षेत्र की धरती पर कब कब आए थे?
वीर जी नौ गुरुओ के नाम के आगे देव जी साहिब जी लगता है और दसवें गुरु के नाम के आगे सिंघ लगता है गुरु गोबिंद सिंघ जी
संत मीरी और संत पीरी कौन थे?
Sat shree akal shabd dharti pr sabse pahle kisne bola thA