धाम यात्रा

स्वर्ण मंदिर के निकट दर्शनीय स्थल

गुरुद्वारा बाबा अटल

गुरुद्वारा बाबा अटल स्वर्ण मंदिर के पास ही है। यह गुरुद्वारा गुरु हरगोबिंद सिंह जी के पुत्र की याद में बनवाया गया था, जो केवल नौ वर्ष की उम्र में काल को प्राप्त हुए थे। करीब दो शताब्दी पहले बना यह गुरुद्वारा मूल रूप से गुरू हरगोविंद जी के बेटे बाबा अटल राय की समाधि है। इस गुरुद्वारा में एक 40 मीटर ऊंचा अष्टभुजीय स्तंभ है। इसमें 9 तल्ले हैं, जो बाबा अटल राय के 9 साल के संक्षिप्त जीवन को दर्शाते हैं। उनका निधन 1628 में हुआ था। गुरुद्वारे की दीवारों पर लगभग 110 चित्र बनाए गए हैं। यह चित्र गुरु नानक देव जी की जीवनी प्रेरक साखियों से संबंधित और सिक्ख संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं।

श्री हरिमंदिर साहिब परिसर के प्रांगण में स्थित नौ मंजिला गुरुद्वारा बाबा अटल राय जी शहर की सबसे ऊंची इमारत होने का रुतबा प्राप्त है, निचले तल पर प्रत्येक कार्डिनल की ओर चार दरवाजे हैं, जबकि मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व की ओर है। गुरू ग्रंथ साहिब को अष्टभुजीय स्तंभ के अंतर्गत रखा गया है। गुरुद्वारा बाबा अटल 24 घंटे लंगर बंटने के कारण सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है, गुरुद्वारे की पहली मंजिल पर बने भित्ति चित्रों के अलावा इसकी छत पर सोने में शीशे काट कर नीले रंग में इस प्रकार जड़ कर नक्काशी की गई है कि देखने वाले देखते ही रहें। नानकशाही ईंटों से उन दिनों भी अष्टभुजी मिस्र की इमारतों की भवन निर्माण कला से मेल खाती इस विशाल इमारत में गुरु प्यारों की श्रद्धा व प्रेम झलकता है |

गुरुद्वारा माता कौलाँ

गुरुद्वारा माता कौलाँ स्वर्ण मंदिर के पास ही है। माता कौलाँ जी गुरुद्वारा बाबा अटल गुरुद्वारे की अपेक्षा छोटा है। यह स्वर्ण मंदिर के बिल्कुल पास वाली झील में बना हुआ है। यह गुरुद्वारा उस दुखयारी महिला को समर्पित है जिसको गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने यहाँ रहने की अनुमति दी थी।

गुरुद्वारा सारागढ़ी साहिब

यह केसर बाग में स्थित है और आकार में बहुत ही छोटा है। इस गुरुद्वारे को 1902 ई.में ब्रिटिश सरकार ने उन सिक्ख सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए बनाया था जो एंग्लो-अफ़गान युद्ध में शहीद हुए थे।

गुरुद्वारे के आसपास कई अन्य महत्वपूर्ण स्थान हैं। छोटे गुरुद्वारे स्वर्ण मंदिर के आसपास स्थित हैं। उनकी भी अपनी महत्ता है।
जैसे थड़ा साहिब, बेर बाबा बुड्ढा जी, गुरुद्वारा लाची बार, गुरुद्वारा शहीद बंगा बाबा दीप सिंह

गुरु का महल

गुरु का महल नामक यह स्थान स्वर्ण मंदिर के नज़दीक ही है। यह वही स्थान है जहाँ स्वर्ण मंदिर के निर्माण के समय गुरु रहते थे। इसे 1573 में अमृतसर के संस्थापक गुरू रामदास जी ने अपने परिवार के घर के तौर पर बनाया था। उनके बेटे गुरू अर्जुन देव जी का विवाह यहीं हुआ था और वह 5वें सिक्ख गुरू बने थे। गुरू अर्जुन देव जी के बेटे गुरू हरगोविंद जी का आवास भी यही गुरुद्वारा था और उनका विवाह भी यहीं हुआ था। साथ ही यह गुरू हरगोविंद जी के बेटे बाबा अटल राय और गुरू तेज बहादुर जी का भी जन्म स्थान है।

तरन तारन

तरनतारन अमृतसर जिले में तरनतारन नामक तहसील का नगर है, जो उत्तरी-पश्चिमी रेलवे की अमृतसर शाखा पर स्थित है। यह पंजाब के ऐतिहासिक स्थानों में गिना जाता है। यह अमृतसर से लगभग 19.2 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इस स्थान पर व्यास और सतलुज नदी का संगम है। कहा जाता है कि मुग़ल बादशाह जहाँगीर के शासन काल में सिक्खों के गुरु अर्जुन देव ने इस स्थान को तीर्थ स्थान के रूप में प्रतिष्ठापित किया था। उच्चतर क्षेत्र का यह प्रमुख नगर है, जिसका धार्मिक महत्व अधिक है। यहाँ 1768 ई० में बना एक मंदिर और एक प्रसिद्ध तालाब है जिसमें दूर-दूर से कोढ़ी लोग अपने रोग से मुक्ति पाने कि लिये आते हैं। ऐसी मान्यता है कि इसके पानी में बीमारियों को दूर करने की ताकत है।तरनतारन नगर से थोड़ी ही दूरी पर बारी दोआब नहर बहती है।

तरनतारन, में चैत्र एवं भाद्रपद माह में यहाँ विशेष मेले लगते हैं।

पावन वाल्मीकि तीर्थ

इसी पावन धरती पर आदिकवि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की थी। यहीं पर माता सीता ने लव को जन्म दिया और सीता की मन की इच्छा को जानकार आदिकवि वाल्मीकि ने काखों( घास के तिनकों) में प्राण डाले और कुश को प्रगट किया।

कहा जाता है कि अमृतसर शहर की स्थापना भगवान वाल्मीकि के अमृत से ही हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा रामचंदर ने जब अश्वमेघ यज्ञ का घोडा छोड़ा था, तो वह घोडा घूमता हुआ वाल्मीकि आश्रम आ पहुंचा, जहां पर लव और कुश खेल रहे थे। वह घोडा लव और कुश ने पकड़ लिया। उसके बाद राम की सेना और कुश-लव के मध्य युद्ध हुआ, जिसमें राजा राम की 72,00,000 सेना को कुश और लव ने मौत के घात उतार दिया। आखिर में राजा राम युद्ध के लिए आये और कुश के हाथों वो भी मृत्यु को प्राप्त हुए। अपने पति को मृत देखकर माता सीता विलाप करने लगी और सीता ने आदिकवि वाल्मीकि से प्रार्थना की। माता सीता की प्रार्थना पर आदिकवि ने अमृत की वर्षा की और राजा राम समेत सबको जिन्दा किया। वह अमृत भगवान वाल्मीकि ने कुश- लव से वहीं दबा देने को कहा।

कहा जाता है कि रजनी के पति का जन्मों का कोढ़ उस अमृत के सरोवर में स्नान करने से ठीक हो गया। जब सिखों के पांचवे गुरु गुरु रामदास जी को यह बात पता चली, तो उन्होंने इस शहर का नाम अमृतसर रखा।

दुर्ग्याणा मंदिर

अमृतसर शहर में हाथी गेट क्षेत्र में स्थित लोहगढ़ द्वार के निकट मौजूद छोटी सी झील जिसे दुर्गियाना झील के नाम से जाना जाता है में स्थित है। ये मंदिर अमृतसर रेलवे स्टेशन से बहुत कम दुरी पर स्थित है और बस स्टैंड से लगभग 1.5 kilometres (0.93 mi) की दुरी पर स्थित है। दुर्गियाना मंदिर जिसे लक्ष्मी नारायण मंदिर, दुर्गा तीर्थ और शीतला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर का नाम देवी दुर्गा, जो हिन्दुओ की इष्ट देवी है के नाम पर रखा गया है जहां इनकी पूजा और आराधना की जाती है।

ऐसा कहा जाता है की मूल मंदिर का निर्माण 16 वीं शताब्दी के दौरान किया गया था। सं 1921 में गुरु हरसाई माल कपूर ने इस मंदिर का विनिर्माण सिखों के स्वर्ण मंदिर की वास्तुकला शैली के अनुसार करवाया था। नवनिर्मित मंदिर का उद्घाटन पंडित मदन मोहन मालवीय ने किया था। इस मंदिर को हरमंदिर की तरह बनाया गया है। इस मंदिर के जलाशय के मध्य में सोने की परत चढा गर्भ गृह बना हुआ है। दुर्गीयाना मंदिर के बिल्कुल पीछे हनुमान मंदिर है। दंत कथाओं के अनुसार यही वह स्थान है जहां हनुमान अश्वमेध यज्ञ के घोडे को लव-कुश से वापस लेने आए थे और उन दोनों ने हनुमान को परास्त कर दिया था। इस मंदिर में देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की भी प्रतिमाएं है।

खरउद्दीन मस्जिद

यह मस्जिद गांधी गेट के नजदीक हॉल बाजार में स्थित है। नमाज के समय यहां बहुत भीड़ होती है। इस समय इसका पूरा प्रागंण नमाजियों से भरा होता है। उचित देखभाल के कारण भारी भीड के बावजूद इसकी सुन्दरता में कोई कमी नहीं आई है। यह मस्जिद इस्लामी भवन निर्माण कला की जीती जागती तस्वीर पेश करती है मुख्य रूप से इसकी दीवारों पर लिखी आयतें। यह बात ध्यान देने योग्य है कि जलियांवाला बाग सभा के मुख्य वक्ता डॉ सैफउद्दीन किचलू और डॉ सत्यपाल इसी मस्जिद से ही सभा को संबोधित कर रहे थे।


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