धाम यात्रा

स्वर्ण मंदिर का इतिहास

श्री हरमंदिर साहिब ( स्वर्ण मंदिर ) बनाने का मुख्य उद्देश्य पुरुष और महिलाओ के लिये एक ऐसी जगह को बनाना था जहा दोनों समान रूप से आराधना कर सके |

कहा जाता है पहले स्वर्ण मंदिर को अमृत सरोवर में बनाने का सपना तीसरे सिख गुरु, श्री अमर दास जी का था। परंतु इसका निर्माण चौथे सिख गुरु रामदास साहिब जी ने बाबा बूढा जी के देखरेख में पूर्ण किया था। श्री हरमंदिर साहिब का निर्माण 1570 में शुरू हो गया था जो 1577 में पूर्ण हुआ था। यह गुरू रामदास का डेरा हुआ करता था। अमृतसर का इतिहास गौरवमयी है। यह अपनी संस्कृति और लड़ाइयों के लिए बहुत प्रसिद्ध रहा है। अमृतसर अनेक त्रासदियों और दर्दनाक घटनाओं का गवाह रहा है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे बड़ा नरसंहार अमृतसर के जलियांवाला बाग में ही हुआ था। इसके बाद भारत पाकिस्तान के बीच जो बंटवारा हुआ उस समय भी अमृतसर में बड़ा हत्याकांड हुआ। यहीं नहीं अफगान और मुगल शासकों ने इसके ऊपर अनेक आक्रमण किए और इसको बर्बाद कर दिया। इसके बावजूद सिक्खों ने अपने दृढ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति से दोबारा इसको बसाया। हालांकि अमृतसर में समय के साथ काफी बदलाव आए हैं लेकिन आज भी अमृतसर की गरिमा बरकरार है।

लगभग 400 साल पुराने इस गुरुद्वारे का नक्शा सिक्खों के पांचवें गुरु श्री अर्जुन साहिब जी , ने तैयार किया था। श्री गुरु अर्जुन साहिब ने लाहौर के मुस्लिम संत हजरत मियां मीर जी द्वारा इसकी आधारशिला (नींव) रखवाई थीं, इसके निर्माण कार्य का पर्यवेक्षण गुरु अर्जन साहिब ने स्वयं किया और बाबा बुद्ध जी, भाई गुरुदास जी, भाई सहलो जी और अन्य कई समर्पित सिक्ख बंधुओं के द्वारा उन्हें सहायता दी गई। ऊँचे स्तर पर ढाँचे को खड़ा करने के विपरीत, गुरु अर्जन साहिब ने इसे कुछ निचले स्तर पर बनाया और इसे चारों ओर से खुला रखा। इस प्रकार उन्होंने एक नए धर्म सिक्ख धर्म का संकेत सृजित किया। गुरु साहिब ने इसे जाति, वर्ण, लिंग और धर्म के आधार पर किसी भेदभाव के बिना प्रत्येक व्यक्ति के लिए सुगम्य बनाया। गुरु अर्जन साहिब ने नव सृजित गुरु ग्रंथ साहिब है जो सिख धर्म का पवित्र ग्रंथ है, की स्थापना श्री हरमंदिर साहिब में की तथा बाबा बुद्ध जी को इसका प्रथम ग्रंथी अर्थात गुरु ग्रंथ साहिब का वाचक नियुक्त किया।

इस के बाद ‘अथ सत तीरथ’ का दर्जा देकर यह सिक्ख धर्म का एक अपना तीर्थ बन गया। श्री हरमंदिर साहिब का निर्माण सरोवर के मध्‍य में 67 वर्ग फीट के मंच पर किया गया है। श्री हरमंदिर साहिब के अंदर ही अकाल तख्त भी मौजूद है जिसे छठवें गुरु, श्री हरगोविंद का घर भी माना जाता है।

स्वर्ण मंदिर को मुगलो से आजाद कराया

1757 ई. में वीर सरदार बाबा दीपसिंह जी ने मुसलमानों के अधिकार से इस मन्दिर को छुड़ाया, किन्तु वे उनके साथ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उन्होंने अपने अधकटे सिर को सम्भालते हुए अनेक शत्रुओं को मौत के घाट उतारा। उनकी दुधारी तलवार मन्दिर के संग्रहालय में सुरक्षित है।

आज के हरमंदिर साहिब गुरुद्वारा को दोबारा 1764 में जस्सा सिंह आहलूवालिया ने सिक्खों के मिसले की मदद से पुनर्निर्माण करवाया था। 19वीं सदी के शुरूआती दौर में महाराजा रणजीत सिंहपंजाब क्षेत्र को बाहरी आक्रमण से सुरक्षित रखा था और उन्होंने हीं गुरुद्वारा के ऊपरी फर्शों को 750 kg सोने से ढक दिया था।

स्वर्ण मंदिर को कई बार नष्ट किया जा चुका है। लेकिन भक्ति और आस्था के कारण सिक्खों ने इसे दोबारा बना दिया।

जितनी बार भी यह नष्ट किया गया है और जितनी बार भी यह बनाया गया है उसकी हर घटना को मंदिर में दर्शाया गया है। अफगा़न हमलावरों ने 19 वीं शताब्दी में इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया था। तब महाराजा रणजीत सिंह ने इसे दोबारा बनवाया था और इसे सोने की परत से सजाया था |

महाराज रणजीत सिंह ने स्वर्ण-मन्दिर को एक बहुमूल्य पटमण्डप दान में दिया था, जो संग्रहालय में है। सबसे पहले गुरू रामदास ने 1577 में 500 बीघा में गुरूद्वारे की नींव रखी थी। आज के गुरुद्वारे को 1764 में जस्सा सिंह अहलूवालिया ने दूसरे कुछ और सिक्खो के साथ मिलकर पुनर्निर्मित किया था. 19 वी शताब्दी के शुरू में ही महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब को बाहरी आक्रमणों से बचाया और साथ ही गुरूद्वारे के ऊपरी भाग को सोने से ढक दिया, और तभी से इस मंदिर की प्रसिद्धि को चार-चाँद लग गए थे |

स्वर्ण मंदिर को धार्मिक एकता का भी स्वरूप माना जाता है। एक सिख तीर्थ होने के बावजूद हरिमंदिर साहिब जी यानि स्वर्ण मंदिर की नींव सूफी संत मियां मीर जी द्वारा रखी गई है।

साल 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान मंदिर का बहुत सारा भाग क्षतिग्रस्त और नष्ट हो गया। ऑपरेशन ब्लू स्टार,में श्री हरमंदिर साहिब में छुपे हुए आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरांवाले और उसके अन्य आतंकवादी साथियों को खदेड़ना था। ऑपरेशन ब्लू स्टार में जरनैल सिंह भिंडरांवाले को मार गिराया गया परंतु इस मुठभेड़ के दौरान अकाल तख्त और मंदिर के कई सुंदर इमारत नष्ट हो गए। इसी बीच प्रधानमंत्री श्री इंदिरा गांधी जी की अक्टूबर महीने में हत्या कर दी गई और 1984 में ही कई सिख विरोधी दंगे हुए।

अमृत पवित्र सरोवर में स्नान का इतिहास

यहाँ दुमंजली बेरी नामक एक स्थान भी है। एक बार एक पिता ने अपनी बेटी का विवाह कोढ़ ग्रस्त व्यक्ति से कर दिया। उस लड़की को यह विश्वास था कि हर व्यक्ति के समान वह कोढ़ी व्यक्ति भी ईश्वर की दया पर जीवित है। एक बार वह लड़की शादी के बाद अपने पति को इसी तालाब के किनारे बैठाकर गांव में भोजन की तलाश के लिए निकल गई। तभी वहाँ अचानक एक कौवा आया, उसने तालाब में डुबकी लगाई और हंस बनकर बाहर निकला। ऐसा देखकर कोढ़ग्रस्त व्यक्ति बहुत हैरान हुआ। उसने भी सोचा कि अगर में भी इस तालाब में चला जाऊं, तो कोढ़ से निजात मिल जाएगी। उसने तालाब में छलांग लगा दी और बाहर आने पर उसने देखा कि उसका कोढ़ नष्ट हो गया।

यह वही सरोवर है, जिसमें आज हर मंदिर साहिब स्थित है। तब यह छोटा सा तालाब था, जिसके चारों ओर बेरी के पेड़ थे। तालाब का आकार तो अब पहले से काफी बड़ा हो गया है, तो भी उसके एक किनारे पर आज भी बेरी का पेड़ है। यह स्थान बहुत पावन माना जाता है। यहां भी श्रद्धालु माथा टेकते हैं।

परंपरा यह है कि श्रद्धालुजन सरोवर में स्नान करने के बाद ही गुरुद्वारे में मत्था टेकने जाते हैं। जहां तक इस विशाल सरोवर की साफ-सफाई की बात है, तो इसके लिए कोई विशेष दिन निश्चित नहीं है। लेकिन इसका पानी लगभग रोज ही बदला जाता है। इसके लिए वहां फिल्टरों की व्यवस्था है। इसके अलावा पांच से दस साल के अंतराल में सरोवर की पूरी तरह से सफाई की जाती है। इसी दौरान सरोवर की मरम्मत भी होती है। इस काम में एक हफ्ता या उससे भी ज्यादा समय लग जाता है। यह काम यानी कारसेवा (कार्य सेवा) मुख्यत: सेवादार करते हैं, पर उनके अलावा आम संगत भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है।

बाबा अटलराय का गुरुद्वारा

स्वर्ण-मन्दिर के निकट बाबा अटलराय का गुरुद्वारा है। ये छठे गुरु हरगोविन्द के पुत्र थे, और नौ वर्ष की आयु में ही सन्त समझे जाने लगे थे। उन्होंने इतनी छोटी-सी उम्र में एक मृत शिष्य को जीवन दान देने में अपने प्राण दे दिए थे। कहा जाता है, कि गुरुद्वारे की नौं मन्ज़िलें इस बालक की आयु की प्रतीक हैं।


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अशोक
अशोक
June 9, 2021 6:38 am

हरमंदिर साहिब को जब अब्दाली ने अपवित्र किया ,सरोवर को मिटटी से भर दिया ,और गोहत्या करके मंदिर के अंदर मस्सा रांगड़ नाचने वालियों को नचवाने लगा था .तब मराठा सेनापति श्री रघुनाथ राव ,और सिधिया जी की सेना ने इस स्थान को मुक्त करवा कर लाहोर और आगे खैबर तक अफगानी सेना को खदेड़ा था ,,साथ ही अफगानी से लुटे धन को मराठा नेता ने सिखों को देकर हरमंदिर साहिब के पुनरनिर्माण का जिम दिया था .उसे क्यूँ और कैसे छुपा लिया आपने ?

Singh
Singh
Reply to  अशोक
May 27, 2022 1:08 pm

history को गलत ना बताएं हिस्ट्री को उल्टा करके घुमा कर ना बताएं सन 1761 में #जस्सा सिंह आहलुवालिया के कुशल नेतृत्व में #सिखों ने…… मराठों को हराकर पानीपत की लड़ाई से लौट रहे अहमद शाह अब्दाली पर #हमला किया और 2200 #Hindu #महिलाओं को उसके चंगुल से रिहा कराकर सकुशल उनके #घर पहुंचाया… baba sukha singh ji baba mehtab singh ji ne मस्सा रांगड़ ka दरबार में घुसकर उसका सिर कलम करके अपनी घोड़ों के ऊपर ले आए थे और स्वर्ण मंदिर की बेअदबी का बदला पूरा किया…

Surendra Bishnoi
Surendra Bishnoi
February 7, 2021 4:59 pm

अमृतसर गुरूद्वारा के लिए घर घर से स्वर्ण एकत्र किया गया था उसका भी उल्लेख करें।