धाम यात्रा

स्वर्ण मंदिर में प्रवेश

स्वर्ण मंदिर के चार प्रवेश द्वार है। चारो दिशाओ से गुरुद्वारे में प्रवेश कर सकते है। मुख्य द्वार हॉल बाज़ार वाली दिशा में है। जिसे घंटाघर वाली साइड भी कहा जाता है। वैसे घंटाघर तो विपरीत दिशा में भी बना हुआ है। फिर भी इसी को घंटाघर वाली साइड कहते है। एक द्वार गुरु राम दास सराय का है।

प्रवेश द्वार के बाहर लगी टोंटियों पर हाथ धोले, और पैर धोने के लिये फर्श में आठ फुट चौड़ा, छः इंच गहरा तालाब बनाया गया था ताकि आप टखनों तक भरे हुए उस पानी में से होते हुए मंदिर में प्रवेश करें। कई व्यक्ति उस पानी को चरणामृत की तरह से पान भी करते है ।
मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व मंदिर के प्रदेश द्वार पर प्लास्टिक की एक बड़ी सी बाल्टी में सैंकड़ों वस्त्र रखे मिलेंगे जिसमें से आप भी एक वस्त्र लेकर उसे अपने सिर पर बांध लें। वापिस जाते समय आप उसे वहीं बाल्टी में छोड़दे |

स्वर्ण मंदिर परिसर में स्थित सभी पवित्र स्थलों की पूजा स्वरूप भक्तगण अमृतसर के चारों तरफ बने गलियारे की परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा पथ के छोरों पर ऐतिहासिक पेड़ “बेरी बाबा बुढ्ढा साहिब” आदि के दर्शन होते है ।। कहा जाता है कि जब स्वर्ण मंदिर बनाया जा रहा था तब बाबा बुड्ढा जी इसी बेरी वृक्ष के नीचे बैठे थे और मंदिर के निर्माण कार्य पर नजर रखे हुए थे। बाबा बुड्ढा जी ही स्वर्ण मंदिर के पहले पूजारी थे। ऐसा ही एक दूसरा पवित्र स्थल – अड़सठ तीर्थ – थड़ा साहिब वहां पर है जहां पर गुरु रामदास जी ने अमृत सरोवर की खुदाई करवाई थी और हरमंदिर साहब की नींव रखवाई गई थी|

परिक्रमा,के बाद अकाल तख्त के दर्शन करते हैं। मंदिर से 100 मी. की दूरी पर स्वर्ण जड़ि‍त, अकाल तख्त में एक भूमिगत तल है और पांच अन्य तल हैं। इसमें एक संग्रहालय और सभागार है। यहाँ पर सरबत खालसा की बैठकें होती हैं। सिक्ख पंथ से जुड़ी हर मसले या समस्या का समाधान इसी सभागार में किया जाता है। अकाल तख्त के दर्शन करने के बाद श्रद्धालु पंक्तियों में स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करते हैं।

सिक्ख गुरु को ईश्वर तुल्य मानते हैं। स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करने से पहले मंदिर के सामने सर झुकाते हैं, फिर पैर धोने के बाद सी‍ढ़ि‍यों से मुख्य मंदिर तक जाते हैं। सीढ़ि‍यों के साथ-साथ स्वर्ण मंदिर से जुड़ी हुई सारी घटनाएं और इसका पूरा इतिहास लिखा हुआ है। स्वर्ण मंदिर एक बहुत ही खूबसूरत इमारत है। इसमें रोशनी की सुन्दर व्यवस्था की गई है। मंदिर परिसर में पत्थर का एक स्मारक भी है जो, जांबाज सिक्ख सैनिकों को श्रद्धाजंलि देने के लिए लगाया गया है। हरिमन्दिर साहिब में पूरे दिन गुरबाणी (गुरुवाणी) पवित्र ग्रंथ श्री गुरु ग्रंथ साहिब से भजन (शबद) सुबह से सूर्यास्त तक गाये जाते हैं। शांत सरोवर (झील) के चारों ओर एक मधुर ध्वनि गूंजती है। इस दिलचस्प संगीत से श्रोताओं में एक अनूठी शक्ति का एहसास होता है जो श्रोताओं को इत्मिनान से परिक्रमा करने में योगदान देता है। स्थान की सौम्यता हमें स्वर्ग के घर जैसा एहसास कराती है। पहले मंजिल के हर की पौड़ी से गुजरते समय आपको गुरु ग्रंथ साहिब के महान विचारों को लिखा हुआ दिखेगा।

रात्रि के समय स्वर्ण मंदिर रात्रि के समय स्वर्ण मंदिर देखने में बहुत ही सुंदर और दिल को सुकून देने वाला लगता है।

स्वर्ण मंदिर बंद होने का समय

रात्रि 11.15 से सुबह 3 बजे तक मंदिर के कपाट बन्द रहते हैं।


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