उड़ीसा प्रान्त के प्रसिद्ध शहर पुरी के नजदीक बने साक्षी गोपाल मन्दिर यह मन्दिर उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से लगभग 50 किलोमीटर तथा जगन्नाथ पुरी से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मन्दिर के बारे में यह धारणा प्रचलित है कि जो श्रद्धालु पुरी में जगन्नाथ जी के दर्शन करने के लिए आएगा उस की यह यात्रा तब ही सम्पूर्ण जब वह साक्षी गोपाल मन्दिर के भी दर्शन करेगा। सभी श्रद्धालु जगन्नाथ जी के दर्शन के बाद इस मन्दिर में भी नतमस्तक होते हैं दर्शन से पहले श्रद्धालु मन्दिर के नजदीक चंदन सरोवर में स्नान करते हैं। यह मन्दिर बहुत ही सुन्दर है।
कहा जाता है कि एक धनवान ब्राह्मण आयु के अंतिम पड़ाव में तीर्थ यात्रा करने के लिए वृंदावन की ओर चला तो उस के साथ एक गरीब ब्राह्मण लड़का भी चल पड़ा। उस समय तीर्थ यात्राएं पैदल ही हुआ करती थी। खाने-पीने की व्यवस्था भी आप ही करनी पड़ती थी।इस यात्रा के दौरान उस गरीब लड़के ने उस बुर्जुग ब्राह्मण की बहुत अच्छी देखभाल की। इस सेवा से खुश होकर वृंदावन के गोपाल मन्दिर में उस ब्राह्मण ने अपनी कन्या का रिश्ता उस गरीब लड़के से पक्का कर दिया तथा लंबे समय के बाद जब वह दोनों पूरी आए तो उस लड़के ने उस ब्राह्मण को भगवान गोपाल जी के सामने किया वादा याद करवाया।
ब्राह्मण ने जब यह बात अपने घर-परिवार में की तो उसके अपने बेटे इस रिश्ते के लिए सहमत न हुए और ब्राह्मण के परिवार वालों ने उस गरीब लड़के की बहुत बेइज्जती की। इस बेइज्जती तथा वादा खिलाफी से दुखी हो कर वह लड़का पचांयत के पास गया तो पंचों की ओर से इस बात का सबूत मांगा गया। लड़के ने कहा कि विवाह के वादे के समय गोपाल (भगवान) जी भी उपस्थित थे। गरीब लड़के की इस बात से पंचों की ओर से उसकी खिल्ली उड़ाई गई।अपने सच को साबित करने के लिए वह लड़का फिर वृदावन पहुंच गया। यहां पहुंच कर उसने भगवान गोपाल जी से अपनी पूरी दर्द कहानी सुनाई तथा हाथ जोड़कर विनती की कि अब आप ही मेरे साथ जाकर पंचायत को सारी बात समझा सकते हैं।
उस लड़के के दृढ़ विश्वास को देख कर गोपाल जी बहुत प्रसन्न हुए तथा उसके साक्षी (गवाह) बनने के लिए तैयार हो गए। भगवान जी ने कहा कि मैं तुम्हारे पीछे-पीछे आऊंगा तथा मेरे घुंगरूओं की झंकार तुम्हारे कानों में पड़ती रहेगी। तुम मेरे आगे-आगे चलते रहना पीछे नहीं देखना। यदि तुमने पीछे देखा तो मैं वही स्थिर हो जाऊंगा। लड़का मान गया तथा दोनों पूरी की ओर चल पड़े। चलते-चलते जब वह अट्टक के नजदीकी गाँव पुलअलसा के पास पहुंचे तो रेतीला रास्ता आरम्भ हो गया। इस कारण घुंगरूओं की आवाज मंद हो गई तथा वह लड़का पीछे की ओर देखने लगा।देखते ही गोपाल जी स्थिर हो गए। अपने साक्षी (भगवान) की स्थिरता को देखकर वह लड़का परेशान हो गया पर भगवान जी ने उस लड़के को कहा कि तुम परेशान न हो बल्कि जा कर पंचायत को यहां ही ले आओ वह गरीब लड़का गया ओर पंचायत को वहां ले आया जहां गोपाल जी खड़े थे। पंचायत के आने पर गोपाल जी ने वह सारी बात दोहरा दी जो धनवान ब्राह्मण ने उस गरीब लड़के से उस की उपस्थिति में की थी।भगवान गोपाल जी के साक्षी (गवाह) बनने से उस गरीब लड़के का विवाह उस ब्राह्मण की लड़की के साथ हो गया तथा भगवान जी वहीं समा गए।
उनकी याद में बना साक्षी गोपाल मन्दिर इस निश्चय को पक्का करता है कि जो भगत अपने भगवान पर भरोसा रखते हैं भगवान भी संकट के समय उनका साथ देते हैं तथा अपना हाथ देकर संकट से उन्हें उभार लेते हैं।
मंदिर में दर्शन के लिऐ किसी प्रकार की अनुमति या पास की आवश्यकता होती है क्या??