श्री जगन्नाथ मंदिर सागर से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर नीलगिरि पर्वत पर स्थित है। मंदिर चारों ओर से एक चौड़ी 20 फुट ऊंची से घिरा हुआ है। मुख्य मंदिर के आसपास लगभग 30 छोटे-बड़े मंदिर स्थापित हैं।मंदिर का वृहत क्षेत्र लगभग 4 लाख वर्ग फुट में फैला है। 182 फुट ऊंचाई शिखर वाले इस मंदिर को ओडिशा का सबसे ऊंचा मंदिर माना जाता है।मंदिर बाहर से किले की तरह भव्य दिखता हैं। चारों दिशाओं में मंदिर के चार प्रवेशद्वार हैं।
मंदिर के पूर्व में सिंहद्वार और दक्षिण में अश्वद्वार ,पश्चिम में व्याघ्रद्वार तथा उत्तर में हस्तिद्वार स्थित हैं। पश्चिम द्वार वाली 16 फुट ऊंची रत्नवेदी पर सुदर्शन चक्र रखा है।मंदिर के शिखर पर लाल ध्वजा इतना भव्य है कि जब यह लहराता है तो इसे सब देखते ही रह जाते हैं। ध्वज पर शिव का चंद्र बना हुआ है। मंदिर के शिखर पर ही अष्टधातु से निर्मित सुदर्शन चक्र मंडित है। इसे नीलचक्र भी कहते हैं।मंदिर का मुख्य ढांचा एक 214-फुट ऊंचे पाषाण चबूतरे पर बना है।
मुख्य मंदिर को तीन भागों में बांटा गया है जैसे श्रीमंदिर ,जगमोहन एवं भोगमण्डपम् मंदिर के आंतरिक गर्भगृह में 120 अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। लगभग हर मंदिर में मंडप और गर्भ गृह हैं। एकदम बाहर की तरफ भोग मंदिर, उसके बाद नट मंदिर फिर जगमोहन अथवा मंडप जहां श्रद्धालु एकत्रित होते हैं मंदिर का मुख्य द्वार सिंह द्वार है इस पर दो सिंहों की विशाल मूर्ति पहरा देते हुए स्थापित की गई है। मंदिर के ठीक सामने एक विशाल स्तूप स्थित है जिसके ऊपर भगवान गरुण देवता की प्रतिमा विराजमान है। इस मंदिर के मुख्य भाग को श्रीमंदिर कहा जाता है जिसमें रत्न वेदी पर भगवान जगन्नाथ(श्रीकृष्ण जी) के साथ भाई बलभद्र(बलराम जी) और बहन सुभद्रा जी की महदारु की लकड़ी से निर्मित दिव्य मूर्तियां विराजमान हैं मूर्तियां उत्कल शैली में बनी हुई हैं।