धाम यात्रा

द्वारका के समीप दर्शनीय स्थल

कच्छ – गुजरात यात्रा कच्छ जिले के बिना अधूरी मानी जाती हैं। पर्यटकों को लुभाने के लिए यहाँ बहुत कुछ हैं। जिले का मुख्यालय हैं  भुज । 45 ,652  वर्गकिलोमीटर के क्षेत्रफल में फैले गुजरात के इस सबसे बड़े ज़िले का अधिकांश हिस्सा रेतीला और दलदली हैं। कांडला, मुंद्रा और जखाऊ यहाँ के मुख्य बंदरगाह हैं। गांधीधाम से कच्छ 70 किलोमीटर हैं। रस्ते में आम एवं ख़जूर के पेड़ लगे हैं। कच्छ के ख़जूर का फल काफी बड़ा और शहद की तरह मीठा होता हैं। इसकी माँग न केवल भारत में बल्कि विदेश के काफी देशों में होती है।

स्वामीनारायण मंदिर – भुज का संगमरमर से निर्मित वास्तुकला का अदभूत नजारा हैं। हरियाली भरे बाग़-बगीचे, सोने से निर्मित सभी देवी -देवताओं की मूर्तियाँ अध्बुध हैं।

माँ आशापुरा मंदिर – (माता नो मढ) अगला पड़ाव हैं।, जो भुज से 95 किलोमीटर दूर यहाँ भोजन प्रसाद के रूप मे निशुल्क उपलब्ध हैं। शक संवत 1300 में कच्छ के जडेजा राजपूत राजाओं ने इस मंदिर को बनबाया था जो कुलदेवी के नाम से पूजा करते थे । ऐसा माना  जाता हैं माँ आशापुरा, हर मन्नतें पूरी करती हैं । नवरात्री के समय काफी श्रदालु माता के दर्शन के लिए आते हैं ।

नारायण सरोवर – गुजरात प्रांत के कच्छ जिले के लखपत तालुका में स्थित हिन्दुओं का पवित्र तीर्थस्थान हैं । माता आशापुरा मंदिर से 57 किलोमीटर की दूरी पर हैं । यहाँ सिंधु नदी का सागर से संगम होता हैं । इस नदी के तट पर पवित्र नारायण सरोवर हैं । हिन्दुओं के पांच पवित्र झील, जो कि तिब्बत का मानसरोवर झील, कर्नाटक का पाम्पा झील, ओड़ीसा का बिन्दुसगार झील, राजस्थान का पुष्कर झील के साथ नारायण सरोवर झील भी एक हैं। पवित्र नारायण सरोवर के तट पर भगवान आदित्यनारायण का प्राचीन भव्य मंदिर हैं । इस झील के साथ एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। अकाल के समय साधुओं की प्रार्थना सुनके नारायण (भगवान विष्णु) धरती पर अवतरित हुए । उन्होनें पाँव के अंगूठे से धरती को जहाँ छुआ वहाँ एक झील बन गई । कार्तिक पूर्णिमा से तीन दिन का भव्य मेला यहाँ आयोजित होता हैं । इस सरोवर में श्रदालु अपने पित्तरों का श्राद्ध भी करते हैं ।

प्राचीन शिवमंदिर कोटेश्वर –  यह नारायण सरोवर से 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं । इस मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता हैं की रावण, भगवान शिव से वरदान लेकर, भगवान शिवशंकर को शिवलिंग के रूप में लेकर जा रहे थे। एकाएक कोटेश्वर में शिवलिंग हाथ से छूटकर धरती पर गिर गया और शिवलिंग,  हज़ारों सामान शिवलिंग में परिवर्तित हो गया और रावण को खाली हाथ लौटना पड़ा तब से यह शिवलिंग यहीं है।

लखपत – लखपत का प्राचीन किला है। किले के अंदर ही एक प्राचीन गुरुद्वारा है। लखपत, पाकिस्तान से सटे हुए भारत का छोर हैं, जो रेगिस्तानी हैं ।

वेदभवन – यह समुद्र के तट पर स्थित वैदिक संस्थान है। यहां से समुद्रतट की चमकती रेत पर्यटकों को खूब लुभाती है।और समुद्र तट पर घूमने फिरने को यहां बाजार है। जो समुद्र की चीजों से बना हुआ सामान मिलता है।

सोमनाथ पट्टल – बेट-द्वारका से समुद्र के रास्ते जाकर बिरावल बन्दरगाह पर उतरना पड़ता है। ढाई-तीन मील दक्षिण-पूरब की तरफ चलने पर एक कस्बा मिलता है इसी का नाम सोमनाथ पट्टल है। यहां एक बड़ी धर्मशाला है और बहुत से मन्दिर है। कस्बे से करीब पौने तीन मील पर हिरण्य, सरस्वती और कपिला इन तीन नदियों का संगम है। इस संगम के पास ही भगवान कृष्ण के शरीर का अंतिम संस्कार किया गया था।

घुमली – बारदा पहाड़ी की तलहटी में एक छोटा गाँव है जिसे घुमली कहा जाता है जिसकी स्थापना ईसा पश्चात 7 वीं शताब्दी में जेठवा साल कुमार ने की थी। गुजरात के सुंदर मंदिरों का शहर कहलाने के पहले यह स्थान जेठवा राजवंश की राजधानी था। इनमें से सोलंकी राजवंश का नवलखा मंदिर प्रसिद्ध है जो गुजरात के सबसे पुराने सूर्य मंदिर के रूप में जाना जाता है। यहाँ एक बावड़ी भी है जिसे विकई वाव कहा जाता है। इस प्राचीन ऐतिहासिक शहर की बहाली का काम गुजरात सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण कर रहा है।


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