द्वारकाधीश मंदिर के दक्षिण में गोमती धारा पर चक्रतीर्थ घाट है। उससे कुछ ही दूरी पर अरब सागर है जहाँ समुद्रनारायण मंदिर स्थित है। इसके समीप ही पंचतीर्थ है। वहाँ पाँच कुओं के जल से स्नान करने की परम्परा है। बहुत से भक्त गोमती में स्नान करके मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं। यहाँ से 56 सीढ़ियाँ चढ़ कर स्वर्ग द्वार से मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं। मंदिर के पूर्व दिशा में शंकराचार्य द्वार स्थापित शारदा पीठ स्थित है।
द्वारका के दक्षिण में एक लम्बा ताल है। इसे ‘गोमती तालाब’ कहते है। इसके नाम पर ही द्वारका को गोमती द्वारका कहते है।
इस गोमती तालाब के ऊपर नौ घाट है। इनमें सरकारी घाट के पास एक कुण्ड है, जिसका नाम निष्पाप कुण्ड है। इसमें गोमती का पानी भरा रहता है। नीचे उतरने के लिए पक्की सीढ़िया बनी है। यात्री सबसे पहले इस निष्पाप कुण्ड में नहाकर अपने को शुद्ध करते है। बहुत-से लोग यहां अपने पुरखों के नाम पर पिंड-दान भी करतें हैं।
गोमती के दक्षिण में पांच कुंए है। निष्पाप कुण्ड में नहाने के बाद यात्री इन पांच कुंओं के पानी से कुल्ले करते है। तब रणछोड़जी के मन्दिर की ओर जाते है। रास्तें में कितने ही छोटे मन्दिर पड़ते है-कृष्णजी, गोमती माता और महालक्ष्मी के मन्दिर। रणछोड़जी का मन्दिर द्वारका का सबसे बड़ा और सबसे बढ़िया मन्दिर है। भगवान कृष्ण को उधर रणछोड़जी कहते है। सामने ही कृष्ण भगवान की चार फुट ऊंची मूर्ति है। यह चांदी के सिंहासन पर विराजमान है। मूर्ति काले पत्थर की बनी है। हीरे-मोती इसमें चमचमाते है। सोने की ग्यारह मालाएं गले में पड़ी है। कीमती पीले वस्त्र पहने है। भगवान के चार हाथ है। एक में शंख है, एक में सुदर्शन चक्र है। एक में गदा और एक में कमल का फूल। सिर पर सोने का मुकुट है। लोग भगवान की परिक्रमा करते है और उन पर फूल और तुलसी दल चढ़ाते है। चौखटों पर चांदी के पत्तर मढ़े है। मन्दिर की छत में बढ़िया-बढ़िया कीमती झाड़-फानूस लटक रहे हैं। एक तरफ ऊपर की मंमें जाने के लिए सीढ़िया है। पहली मंजिल में अम्बादेवी की मूर्ति है-ऐसी सात मंजिलें है और कुल मिलाकर यह मन्दिर एक सौ चालीस फुट ऊंचा है। इसकी चोटी आसमान से बातें करती है।
रणछोड़ जी के मन्दिर की ऊपरी मंजिलें देखने योग्य है। यहां भगवान की सेज है। झूलने के लिए झूला है। खेलने के लिए चौपड़ है। दीवारों में बड़े-बड़े शीशे लगे हैं। इन पांचों मन्दिरों के अपने-अलग भण्डारे है,इन पांच विशेष मन्दिरों के सिवा और भी बहुत-से मन्दिर इस चहारदीवारी के अन्दर है। ये प्रद्युम्नजी, टीकमजी, पुरूषोत्तमजी, देवकी माता, माधवजी अम्बाजी और गरूड़ के मन्दिर है। इनके सिवाय साक्षी-गोपाल, लक्ष्मीनारायण और गोवर्धननाथजी के मन्दिर है। ये सब मन्दिर भी खूब सजे-सजाये हैं। इनमें भी सोने-चांदी का काम बहुत है।
परिक्रमा : रणछोड़जी के दर्शन के बाद मन्दिर की परिक्रमा की जाती है। मन्दिर की दीवार दोहरी है। दो दीवारों के बीच इतनी जगह है कि आदमी समा सके। यही परिक्रमा का रास्ता है। रणछोड़जी के मन्दिर के सामने एक बहुत लम्बा-चौड़ा 100 फुट ऊंचा जगमोहन है। इसकी पांच मंजिलें है। रणछोड़जी के बाद इसकी परिक्रमा की जाती है। इसकी दीवारे भी दोहरी है।
दक्षिण की तरफ बराबर-बराबर दो मंदिर है। एक दुर्वासाजी का और दूसरा मन्दिर त्रिविक्रमजी का जिन्हे टीकमजी कहते है। त्रिविक्रमजी के मन्दिर के बाद प्रधुम्नजी के दर्शन करते हुए यात्री इन कुशेश्वर भगवान के मन्दिर में जाते है। मन्दिर में एक बहुत बड़ा तहखाना है। इसी में शिव का लिंग है और पार्वती की मूर्ति है।
कुशेश्वर शिव मन्दिर के बराबर-बराबर दक्षिण की ओर छ: मन्दिर और है। इनमें अम्बाजी और देवकी माता के मन्दिर खास हैं। रणछोड़जी के मन्दिर के पास ही राधा, रूक्मिणी, सत्यभामा और जाम्बवती के छोटे-छोटे मन्दिर है। इनके दक्षिण में भगवान का भण्डारा है और भण्डारे के दक्षिण में शारदा-मठ है।
शारदा-मठ को आदि गुरू शंकराचार्य ने बनबाया था। उन्होने पूरे देश के चार कोनों में चार मठ बनायें थे। उनमें एक यह शारदा-मठ है। परंपरागत रूप से आज भी शंकराचार्य मठ के अधिपति है। भारत में सनातन धर्म के अनुयायी शंकराचार्य का सम्मान करते है।
रणछोड़जी के मन्दिर से द्वारका शहर की परिक्रमा शुरू होती है। पहले सीधे गोमती के किनारे जाते है। गोमती के नौ घाटों पर बहुत से मन्दिर है- सांवलियाजी का मन्दिर, गोवर्धननाथजी का मन्दिर, महाप्रभुजी की बैठक।
आगे वासुदेव घाट पर हनुमानजी का मन्दिर है। आखिर में संगम घाट आता है। यहां गोमती समुद्र से मिलती है। इस संगम पर संगम-नारायणजी का बहुत बड़ा मन्दिर है।
संगम-घाट के उत्तर में समुद्र के ऊपर एक ओर घाट है। इसे चक्र तीर्थ कहते है। इसी के पास रत्नेश्वर महादेव का मन्दिर है। इसके आगे सिद्धनाथ महादेवजी है, आगे एक बावली है, जिसे ‘ज्ञान-कुण्ड’ कहते है। इससे आगे जूनीराम बाड़ी है, जिससे, राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तिया है। इसके बाद एक और राम का मन्दिर है, जो नया बना है। इसके बाद एक बावली है, जिसे सौमित्री बावली यानी लक्ष्मणजी की बावजी कहते है। काली माता और आशापुरी माता की मूर्तिया इसके बाद आती है।
इनके आगे यात्री कैलासकुण्ड़ पर पहुंचते है। इस कुण्ड का पानी गुलाबी रंग का है। कैलासकुण्ड के आगे सूर्यनारायण का मन्दिर है। इसके आगे द्वारका शहर का पूरब की तरफ का दरवाजा पड़ता है। इस दरवाजे के बाहर जय और विजय की मूर्तिया है। जय और विजय बैकुण्ठ में भगवान के महल के चौकीदार है। यहां भी ये द्वारका के दरवाजे पर खड़े उसकी देखभाल करते है। यहां से यात्री फिर निष्पाप कुण्ड पहुंचते है और इस रास्ते के मन्दिरों के दर्शन करते हुए रणछोड़जी के मन्दिर में पहुंच जाते है। यहीं परिश्रम खत्म हो जाती है। यही असली द्वारका है। इससे बीस मील आगे कच्छ की खाड़ी में एक छोटा सा टापू है। इस पर बेट-द्वारका बसी है। गोमती द्वारका का तीर्थ करने के बाद यात्री बेट-द्वारका जाते है। बेट-द्वारका के दर्शन बिना द्वारका का तीर्थ पूरा नहीं होता। बेट-द्वारका पानी के रास्ते भी जा सकते है और जमीन के रास्ते भी।
जमीन के रास्ते जाते हुए तेरह मील आगे गोपी-तालाब पड़ता है। यहां की आस-पास की जमीन पीली है। तालाब के अन्दर से भी रंग की ही मिट्टी निकलती है। इस मिट्टी को वे गोपीचन्दन कहते है। यहां मोर बहुत होते है।
कहा जाता है,भगवान कृष्ण के बचपन की कहानियां के साथ इस झील के साथ संबंध है। वे वृंदावन में गोपीयो के साथ रास नृत्य करते थे। जब वह द्वारका में चले गए, तो गोपी अलग होने का सामना नहीं कर सकी और उनसे मिलने आए। वे अपने कृष्ण के साथ उत्तर द्वारका से 20 किमी गोपी तलाव में, शरद पूर्णिमा की रात में एकजुट हो गए और एक बार फिर उनके साथ रास नृत्य किया। किंवदंती का कहना है कि, कृष्ण से भाग लेने में असमर्थ, गोपी ने अपनी ज़िंदगी इस भूमि की मिट्टी में दी और अपने प्रिय के साथ विलय कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि वे पीली मिट्टी में बदल गए, जिन्हें गोपी चंदन कहा जाता है। आज भी गोपी तालाब की मिट्टी बहुत चिकनी और पीले रंग की है।
गोपी तालाब से तीन-मील आगे नागेश्वर नाम का शिवजी और पार्वती का छोटा सा मन्दिर है। यात्री लोग इसका दर्शन भी जरूर करते है।कहते है, भगवान कृष्ण इस बेट-द्वारका नाम के टापू पर अपने घरवालों के साथ सैर करने आया करते थे। यह कुल सात मील लम्बा है। यह पथरीला है। यहां कई अच्छे और बड़े मन्दिर है। कितने ही तालाब है। कितने ही भंडारे है। धर्मशालाएं है और सदावर्त्त लगते है। मन्दिरों के सिवा समुद्र के किनारे घूमना बड़ा अच्छा लगता है।
गीता मंदिर द्वारका के पश्चिमी घाट की ओर भद्रकेश्वर महादेव मंदिर के नजदीक स्थित है । यह मंदिर १९७० में बिरला के उद्योगपति परिवार द्वारा बनाया गया था। यह मंदिर मार्बल के पत्थर के द्वारा बनाया गया है, जो मंदिर की सुंदरता को जोड़ता है। हिंदू की धार्मिक पुस्तक, ‘भगवद् गीता’ के समृद्ध शास्त्र, शिक्षा और मूल्यों की रक्षा के लिए इस मंदिर का निर्माण किया गया था।
इसके अलावा, मंदिर की दीवारों पर हिंदुओं की पवित्र किताब भगवद गीता मंदिर पर अंकित है। इसके साथ ही, मंदिर की छत को एक विशेष तरीके से बनाया गया है ताकि हॉल में सुनाई जाने वाली हर आवाज प्रतिध्वनित हो। तीर्थयात्रियों को रहने के लिए मंदिर में आवास की सुविधा भी उपलब्ध है। सुंदर नक्काशी और पेंटिंग मंदिर की सुंदरता को बढ़ाती है। भगवान कृष्ण की एक सुंदर छवि मंदिर के पवित्र स्थान में मौजूद है। गीता स्तंभ भी मंदिर में मौजूद है। जन्माष्टमी और होली के शुभ अवसर पर मंदिर को सुंदरता से सजाया जाता है।
यह मंदिर द्वारका शहर से 2 किमी दूर स्थित है। इस दूरी के लिए एक स्थानीय पुरानी कथा है। वे कहते हैं, एक बार भगवान कृष्ण और उनकी पत्नी रुक्मिणीजी ने ऋषि दुर्वेशजी को द्वारका में रात के खाने के लिए आमंत्रित किया था। तब रुषी ने इस शर्त पर सहमति जताई कि श्री कृष्ण और रुक्मिणीजी किसी भी जानवर की बजाय अपने रथ को अपने आप खींचना होगा। रथ को खींचते समय, रुक्मिणी प्यासे हो जाते हे, इसलिए भगवान कृष्ण ने पवित्र गंगा जल के वसंत को आकर्षित करने के लिए धरती पर अपना पैर लगाया वहा पानी निकला । तब रुक्मिणी ने बिना रुषी से पूछकर पानी का एक घूंट लिया। उससे नाराज होकर रूक्मिणी को शाप दिया कि वह अपने प्रिय पति से अलग हो जाएगी। इसलिए रुक्मिणी मंदिर द्वारका के जगत मंदिर से 2 किमी दूर स्थित है। यह मंदिर 2500 साल पुराना हे|
रूक्मिणी मंदिर के बाहरी रूप से बड़े पैमाने पर नक्काशी की गई है। इसमें मूर्तिकला नारथार (मानवीय आंकड़े) का एक पैनल और आधार पर मशहूर गजथार (हाथियों) का एक पैनल है। नर और मादा के आंकड़ों के साथ-साथ भगवान और देवी-देवताओं की सामान्य मूर्तियां, मंदिर के बाहरी हिस्सों में देखी जाती हैं।
रुक्मिनी मंदिर के पास सात तालाब हैं, ये द्वारका में लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है। इन सात तालाबों को सामूहिक रूप से रुक्मिनी व्याध के रूप में जाना जाता है हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह जगह सभी मनुष्यों के पापों को दूर कर देती है और मानव जाति पर मुक्ति प्रदान करती है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर गुजरात में सौराष्ट्र के तट पर द्वारका शहर और बेत द्वारका द्वीप के बीच के मार्ग पर स्थित हे| यहा बहुत ही महत्वपूर्ण भगवान शिव का मंदिर है। यह एक भूमिगत अभयारण्य में, दुनिया के 12 स्वयंभू ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहाँ बैठे भगवान शिव की एक 25 मीटर ऊंची प्रतिमा और एक तालाब के साथ एक बड़े बगीचे के साथ इस जगह निर्मल जगह माना जाता है। यह शक्तिशाली ज्योतिर्लिंग सभी जहरों से सुरक्षा का प्रतीक है। यह कहा जाता है कि जो नागेश्वर लिंग के लिए प्रार्थना करते हैं वे विष से मुक्त हो जाते हैं।
किंवदंती के अनुसार, बौना ऋषियों के एक समूह ‘बलखिलास’ ने लंबे समय से दारुकाना में भगवान शिव की पूजा की थी। अपनी भक्ति और धैर्य का परीक्षण करने के लिए, शिव उनके शरीर पर केवल नाग (सर्पस) पहने नग्न तपस्या के रूप में आये थे। संतों की पत्नी संत को आकर्षित हो गई और उसके पीछे चली गईं, अपने पति को पीछे छोड़कर संतों ने बहुत परेशान महसूस किया और इस पर अत्याचार किया।
उन्होंने अपना धैर्य खो दिया और तपस्या को खोने के लिए तपस्या को शाप दिया। और शिव लिंग पृथ्वी पर गिर गया और पूरी दुनिया कांप उठी । भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु भगवान शिव के पास आए और उन्होंने पृथ्वी को विनाश से बचाने और अपनी लिंग वापस लेने के लिए अनुरोध किया। शिव ने उन्हें सांत्वना दीया और अपने लिंग को वापस ले लिया। भगवान शिव ने अपनी दिव्य उपस्थिति ‘ज्योतिर्लिंग’ के रूप में हमेशा के लिए दारुकाना में देने का वादा किया।
रणछोड़ के मन्दिर से डेढ़ मील चलकर शंख-तालाब आता है। इस जगह भगवान कृष्ण ने शंख नामक राक्षस को मारा था। इसके किनारे पर शंख नारायण का मन्दिर है। शंख-तालाब में नहाकर शंख नारायण के दर्शन करने से बड़ा पुण्य होता है।
मई के महीने में गुजरात के द्वारका मंदिर में दर्शन के लिए कितनी लम्बी लाइन लगती है और कुल कितना समय लगता है
इन सभी स्थलों तक पहुंचने के लिए क्या आटो या राजकीय परिवहन की पर्यटन बस उपलब्ध है ?