हिमालय की गोद में स्थित केदारनाथ धाम भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है | यह चारधाम और पंच केदार में भी सम्मिलित है | मन्दाकिनी नदी के निकट स्थित विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर समुद्र तल से 3562 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है |
केदारनाथ मंदिर १००० वर्ष पूर्व निर्मित मन जाता है | लोक कथाओं की मानें तो इस मंदिर का निर्माण पांडवों या उनके वंशज ने करवाया था और ८ वीं शताब्दी में इसका जीर्णोद्धार आदि शंकराचार्य ने करवाया |
केदारनाथ धाम पुरे भारतवर्ष में एक प्रमुख तीर्थ है | लोक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ने यहाँ हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान शिव की तपस्या की और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर यहीं सदा के लिए ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करने का निर्णय लिया |
अन्य कथा महाभारत काल की बताई जाती है | महाभारत युद्ध समाप्त होने के उपरांत विजयी पांडव नरहत्या के पाप से मुक्ति पाने हेतु भगवान शिव के पास आशीर्वाद लेने गये | भगवान शिव पांडवों से रुष्ट होने के कारण काशी छोड़ हिमालय में केदार स्थान पर बस गए | पांडव भी भगवान शिव को ढूंढ़ते हुए केदार स्थान पर आ पहुंचे | भगवान शिव ने तब बैल का रूप धारण कर लिया और धरती में प्रवेश करने लग गए | परन्तु बलवान भीम ने उनके त्रिकोणात्मक पीठ को पकड़ लिया | भगवान शिव तब पांडवों की भक्ति देख कर प्रसन्न हो गए और उनको पाप मुक्ति का आशीर्वाद दे दिया |
जहाँ भगवान शिव की पीठ का त्रिकोणात्मक भाग था वही आज दिव्यशिला के रूप में केदारनाथ मंदिर में पूजा जाता है | इसी प्रकार भगवान शिव का मस्तक नेपाल में काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर में पूजा जाता है | भगवान शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पयात्रा का ंचकेदार कहा जाता है।
केदारनाथ मंदिर प्रातः 6 बजे श्रधालुओं के लिए खोला जाता है और रात्रि 8 बजे बंद कर दिया जाता है | प्रातः नियमित 7:30 से 8:30 तक भगवान शिव की प्रतिमा का श्रृंगार और आरती होती है | मंदिर में श्रद्धालु शुल्क जमा करवाकर पूजा आरती कर सकती है |
केदारनाथ धाम खुलने की तिथि महाशिवरात्रि को निकली जाती है | केदारनाथ मंदिर सामान्यतः अक्षय तृतीय के दिन या उसके बाद खुलता है और भाई दूज के दिन बंद कर दिया जाता है |