माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं ऐसी ही एक प्रसिद्ध प्राचीन कहानी है माता वैष्णो के परम भक्त श्रीधर की वे वर्तमान कटरा कस्बे से 2 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित हंसली गांव में रहता थे एक बार उन्होंने अपने घर पर कन्या भोज का आयोजन किया। भोजन के बाद सारी कन्याएं अपने घर चली गई। एक कन्या नहीं गई। वह कन्या जिसका स्वरूप दिव्य था। मान्यता है की श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर माता वैष्णो ने कन्या रूप में उनको दर्शन दिए. उस कन्या ने पंडित से माता का भंडारा आयोजित करने के लिए कहा उन्होंने कहा में गरीब इतने लोगो का भोजन कहा से लाऊंगा कन्या ने कहा माता सब पूर्ण करेगी चिंता मत करो कहकर विलुप्त हो गई।
श्रीधर ने अपने गाँव में माता का भण्डारा रखा और श्रीधर ने आस पास के सभी गांव वालो व साधु-संतों को भंडारे में पधारने का निमंत्रण दिया। पहली बार तो गाँववालों को विश्वास ही नहीं हुआ कि निर्धन श्रीधर भण्डारा कर रहा है। श्रीधर ने एक स्वार्थी राक्षस भैरवनाथ को भी उसके शिष्यों के साथ आमंत्रित किया था। भंडारे के एक दिन पहले, पंडित श्रीधर सो नहीं पा रहे थे यह सोचकर की वह मेहमानों को भोजन कैसे करा सकेंगे भंडारे वाले दिन पुनः श्रीधर अनुरोध करते हुए सभी के घर बारी-बारी गए ताकि उन्हें खाना बनाने की सामग्री मिले और वह खाना बना कर मेहमानों को भंडारे वाले दिन खिला सके। जितने लोगों ने उनकी मदद की वह काफी नहीं थी क्योंकि मेहमान बहुत ज्यादा थे इतनी कम सामग्री और इतनी कम जगह दोनों ही समस्या थी।
वह सुबह तक समस्याओं से घिरे हुए थे और बस उसे अब देवी मां से ही आस थी। वह अपनी झोपड़ी के बाहर पूजा के लिए बैठ गए,दोपहर तक साधू संत मेहमान आना शुरू हो गए थे श्रीधर को पूजा करते देख वे जहां जगह दिखी वहां बैठ गए। सभी लोग श्रीधर की छोटी से कुटिया में 360 से अधिक श्रद्धालुओं आसानी से बैठ गए और अभी भी काफी जगह बाकी थी।श्रीधर ने अपनी आंखें खोली और सोचा की इन सभी को भोजन कैसे कराएंगे, तब उसने एक छोटी लड़की को झोपडी से बाहर आते हुए देखा जो सबको अपना नाम वैष्णवी बता रही थी वह सभी को स्वादिष्ट भोजन परोस रही थी, भक्त श्रीधर माता के पैरो मे गिर गए भण्डारा सम्पन्न होने को था कि लेकिन पूर्ण व्यवस्था देखकर भैरव नाथ ने जान लिया कि बालिका में जरूर अलौकिक शक्तियां है और आगे और परीक्षा लेने का निर्णय लिया। भंडारे में भैरवनाथ ने खीर-पूड़ी की जगह मांस-मदिरा का सेवन करने की बात की तब श्रीधर ने इस पर असहमति जताई।
भैरवनाथ को क्रोध आ गया कन्यारूपी माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को समझाने की कोशिश की किंतु भैरवनाथ ने उसकी एक ना मानी। ओर युद्ध शुरू हो गया किंतु जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, कन्या वहाँ से त्रिकूट पर्वत की ओर भागी और उस कन्यारूपी वैष्णो देवी ने हनुमान को बुलाकर कहा कि मैं इस गुफा में नौ माह तक तपस्या करूंगी। तब तक तुम भैरवनाथ को उलझा के रखो गुफा के बाहर माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने भैरवनाथ के साथ नौ माह खेल खेला। 9 महीनों तक ध्यानमग्न रहकर उनको अशंख शक्तिया प्राप्त हुई. भैरव द्वारा उन्हें ढूंढ़ लेने पर उनकी साधना भंग हुई. जब भैरव ने उन्हें मारने की कोशिश की, तो विवश होकर वैष्णो देवी ने महा काली का रूप लिया। दरबार में पवित्र गुफ़ा के द्वार पर देवी मां प्रकट हुईं. देवी ने इतनी शक्ति के साथ भैरव का सिर धड़ से अलग किया कि उसकी खोपड़ी पवित्र गुफ़ा से 3 कि॰मी॰ की दूरी पर भैरव घाटी नामक स्थान पर जा गिरी. माना जाता है कि इस प्राचीन गुफा के अंदर आज भी भैरव का शरीर मौजूद है त्रिकुट पर वैष्णो मां ने भैरवनाथ का संहार किया तथा भैरव ने मरते समय क्षमा याचना की देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी।
उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि भैरवनाथ को वरदान भी दिया ओर अपने से उंचा स्थान दिया कहा कि जो मनुष्य मेरे दर्शन के पशचात् तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा उसकी यात्रा पूरी नहीं होगी इसके बाद माता वैष्णो देवी ने अर्धक्वाँरी के पास गर्भ जून में एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं.श्रद्धालुओं का मानना है कि जिस तरह से शिशु नौ मास तक गर्भ में रहता है, उसी प्रकार वैष्णो देवी ने यहां नौ मास तक कठिन तपस्या करी थी। इसी लिये इसका नाम गर्भजून पड़ा गुफा को लेकर मान्यता है कि जो भी मनुष्य इस गुफा में जाता है उसे फिर गर्भ में नहीं जाना पड़ता है। अगर मनुष्य गर्भ में आता भी है तो गर्भ में उसे कष्ट नहीं उठाना पड़ता है और उसका जन्म सुख एवं वैभव से भरा होता है अर्धक्वाँरी के पास ही नदी के किनारे माता की चरण पादुका देवी मां के पैरों के निशान हैं, जो आज तक उसी तरह विद्यमान हैं यह वह स्थान है, जहाँ माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। कहते हैं उस वक्त हनुमानजी माँ की रक्षा के लिए माँ वैष्णो देवी के साथ ही थे।
हनुमान जी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर एक बाण चलाकर जलधारा को निकाला और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा ‘बाणगंगा’ के नाम से जानी जाती है, जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से भक्तों की सारी व्याधियाँ दूर हो जाती हैं।
एक बार माता ने पंडित श्रीधर को उसी कन्या वैष्णवी ने स्वन मे आकर गुफा के बारे मे बताया ओर तीन पिंडियो के दर्शन कराए पंडित श्रीधर त्रिकुटा पर्वत की ओर उसी रास्ते आगे बढ़े जो उन्होंने सपने में देखा था अंततः वे गुफ़ा के द्वार पर पहुंचे। श्रीधर पंडित को माँ वैष्णो के साक्षात दर्शन इसी गुफा के अन्दर हुए उन्होंने तय किया की वह अपना सारा जीवन मां की सेवा करेंगे ओर पिंडियो की पूजा को अपनी दिनचर्या बना ली. देवी उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें चार बेटों का वरदान व आशीर्वाद दिया तब से, श्रीधर और उनके वंशज देवी मां वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं
जब से त्रिकुटा को पता चला कि भगवान विष्णु ने राम के रूप में अवतार लिया है तब से देवी त्रिकूटा ने राम को पति रूप में पाने के लिए तपस्या शुरू कर दी। सीता हरण के बाद भगवान राम जब सीता को ढूंढते हुए रामेश्वरम तट पर पहुंचे। उनकी दृष्टि गहरे ध्यान में लीन इस दिव्य बालिका पर पड़ी यहां राम कुटिया के पास गए ओर आहट से वैष्णवी की समाधी भंग हो गई राम को समक्ष देख बहुत प्रसन्न हुई ओर उसने अनेक प्रकार से उनका महिमा सत्कार किया श्री राम बोले हे देवी तुम कोन हो ओर इस तपस्या का कारण क्या है कन्या ने उत्तर दिया मै पण्डित रत्नाकर की पुत्री त्रिकुटा हूं ओर आप को ही पति रूप में पाने के लिये तप कर रही हूं आप मुझे पत्नी के रूप मे स्वीकार करे भगवान राम ने देवी त्रिकूटा से कहा कि मैंने इस अवतार में एक पत्नी व्रत रहने का वचन लिया है। मेरा विवाह सीता से हो चुका है इसलिए मैं आपसे विवाह नहीं कर सकता है।
देवी त्रिकूटा ने जब कठोर तप का वास्ता दिया तब श्री राम ने कहा कि तुम्हे तुम्हारे तप का फल अवश्य मिलेगा पर एक शर्त है कि जब मै रावण पर विजय प्राप्त कर लंका से लौटते समय मैं भेष बदल कर आपके पास आऊंगा अगर आप मुझे पहचान लेंगी तो मैं आपसे विवाह कर लूंगा।श्री राम ने अपने वचन का पालन किया और लंका से लौटते समय देवी त्रिकूटा के पास वृद्ध साधू का भेष बना कर पोहचे ओर भोजन मांगा त्रिकूटा ने उनको भोजन कराया ओर दक्षिणा भी दी लेकिन उन्हें पहचान नहीं सकी। तब भगवान ने खुद असली रूप में आ कर परिच्य देकर कहा देवि आप इस परीक्षा में सफल न हो पाईं इसमे तुम्हारा कोई दोष नही ईश्वर नही चाहता की मे इस अवतार मे तुम से विवाह करू किंतु मै अपने बचन को पूर्ण करने के लिये कलयुग में जब मेरा अवतार होगा तब मैं आकर आपसे विवाह करुंगा।
हिंदू महाकाव्य के अनुसार त्रेतायुग युग मे दक्षिण भारत के रामेश्वरम समुद्र तट पर एक गांव में रत्नाकर पंडित रहते थे. रत्नाकर शिवजी और मां आदि शक्ति के बड़े भक्त थे पर उन्हें कोई संतान न थी.रत्नाकर की पत्नी हमेशा मां आदिशक्ति से संतान की गुहार लगाती रहती थीं. उन्होंने लगातार कई वर्षों तक मां की पूजा अर्चना की. कई सालों से संतानहीन रत्नाकर की पत्नी की प्रार्थना एक दिन मां सुन ली.वह गर्भवती हुई तो एक रात रत्नाकर के सपने में एक बालिका ने आकर कहा- मैं तुम्हारे घर आ रही हूं पर एक शर्त पर, मैं जो कुछ करना चाहूं, रोकोगे नहीं. जब वह नौ वर्ष की हुई त्रिकुटा ने अपने पिता से कहा कि वह रामेश्वरम के तट पर रहकर तपस्या करना चाहती हैं. शर्त के मुताबिक रत्नाकर ने उसे नहीं रोका. दस बरस की उम्र से ही त्रिकुटा, समुद्रतट पर एक कुटी बना कर रहने लगी।
श्री राम ने त्रिकुटा को कहा कि मेरे कलयुग मे अवतार लेने तक महावीर हनुमान आपकी सेवा में रहेंगे और धर्म की रक्षा में आपकी सहायता करेंगे। धर्म का पालन करने वाले भक्तों की आप मनोकामना पूरी कीजिए। तब तक आप उत्तर भारत में स्थित माणिक पर्वत श्रृंखला पर एक दिव्य गुफा है उस गुफा में तीनों महाशक्तियां महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली पिण्डी रूप में विराजमान हैं।आप उसी गुफा में जाकर मेरी प्रतिक्षा कीजिए। विष्णु का अंश होने, उनके वंश में पैदा होने और विष्णु पूजक होने के नाते सारा संसार तुम्हें मां वैष्णों के रूप में पूजेगा।
भगवान राम के आदेश के अनुसार आज भी वैष्णो माता अदृश्य रूप में उस वचन के पूरा होने का इंतजार मे कंवारी बैठी हैं और अपने दरबार में आने वाले भक्त के दुःख दूर कर उनकी झोली भर रही हैं।
माँ वैष्णो देवी के दरबार में नवरात्रि के नौ दिनों में प्रतिदिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। कई बार तो श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या से ऐसी स्थिति निर्मित हो जाती है कि पर्ची काउंटर से यात्रा पर्ची देना बंद करनी पड़ती है। इस वर्ष भी नवरात्रि में हर रोज लगभग 100000 से अधिक श्रद्धालु माँ वैष्णो के दर्शन के लिए कटरा आते हैं। विभिन्न देशों से विशेष रूप से नॉर्वे, हीलिओलस , लिलिअम एंथ्यूरियम ऑर्किडस्वीडन और रूस से आयात किए गए फूलों का इस्तेमाल नववराति उत्सव के लिए प्रमुख वैष्णो देवी मंदिर को सजाने के लिए किया जाता है।
माता के पैर विशिष्ट रूप से सजाए गए फूलों से सुशोभित होते हैं जो उनकी सुंदरता को बढ़ाते हैं।
श्रीधर का मंदिर कहां है क्या श्रीधर का कोई मंदिर बना था अगर हां तो वह कहां है
माँ वैष्णोदेवी के भवन तक उस समय कैसे जाते थे जब वर्तमान के सडक या सीढियाँ नहीं थी,,,,,,,,