मंदिर के अधिकारियों के अनुसार हाल में लागू किए गए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के कारण अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर और अन्य गुरुद्वारों में आयोजित की जानेवाली इस सामाजिक-धार्मिक गतिविधि पर 10 करोड़ रुपये से ज्यादा का बोझ पड़ा है। इन सामुदायिक रसोई घरों के लिए खरीदी जानेवाली ज्यादातर वस्तुएं नए जीएसटी के विभिन्न करों की दरों के अंतर्गत आती हैं। सिख धर्म की लघु-संसद शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के कई गुरुद्वारों में सामुदायिक रसोईघर चलाती है, जिसमें अमृतसर का हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) भी शामिल है। एसजीपीसी को अब इस मद में हर साल 10 करोड़ रुपये से अधिक का अतिरिक्त बोझा पड़ेगा।
स्वर्ण मंदिर के अलावा एसजीपीसी अन्य प्रमुख गुरुद्वारों में भी लंगर सेवा चलाती है, जिसमें आनंदपुर साहिब का तख्त केशगढ़ साहिब (जहां गुरु गोविंद सिंह द्वारा 13 अप्रैल, 1699 को आधुनिक युग के खालसा पंथ की स्थापना की गई थी), भटिंडा के तलवंडी साबू का तख्त दमदमा साहिब समेत अन्य गुरुद्वारे शामिल हैं। लंगर सेवा’ (सामुदायिक रसोईघर) एक सामाजिक-धार्मिक गतिविधि है, जो पहले सिख गुरु नानक देव (1469-1539) के समय से ही सिख धर्म के लोकाचार का हिस्सा है। लंगर को समाज में धर्म, जाति, रंग और नस्ल के भेद को मिटाकर समानता को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया था।
जीएसटी की नई दरों के लागू होने के बाद एसजीपीसी को रसोईघर के सामान की खरीद के लिए अधिक वित्तीय बोझ उठाना होगा। केंद्रीय खाद्यान्न प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने वित्तमंत्री अरुण जेटली को पत्र लिखकर मांग की है कि एसजीपीसी द्वारा ‘लंगर सेवा’ के लिए की जाने वाली सभी खरीद को जीएसटी अधिनियम से छूट दी जाए।
बादल का कहना है, ‘पंजाब सरकार ने पहले एसजीपीसी की लंगर सेवा के लिए श्री दरबार साहिब, अमृतसर, श्री केशगढ़ साहिब, आनंदपुर और तलवंडी साबू भटिंडा द्वारा खरीदी जाने वाली सभी वस्तुओं को वैट से छूट दी थी। एसजीपीसी देशी घी, चीनी, दालों की खरीद पर हर साल 75 करोड़ रुपये खर्च करती है। लेकिन अब इन वस्तुओं के जीएसटी के अंतर्गत पांच से 18 फीसदी कर के दायरे में आने के कारण इनकी खरीद पर 1० करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने होंगे।’