लंगर में गुरुद्वारे आने वाले श्रद्धालुओं के लिए खाने-पीने की पूरी व्यवस्था होती है। यह लंगर श्रद्धालुओं के लिए 24 घंटे खुला रहता है। खाने-पीने की व्यवस्था गुरुद्वारे में आने वाले चढ़ावे और दूसरे कोषों से होती है। लंगर में खाने-पीने की व्यवस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की ओर से नियुक्त सेवादार करते हैं। वे यहाँ आने वाले लोगों (संगत) की सेवा में हर तरह से योगदान देते हैं।
ये भारत का पहला ऐसा मुफ्त रसोई घर है। जहाँ करीब 1 लाख श्रद्धालु रोजाना लंगर में प्रसादी ग्रहण करते हैं। परन्तु लंगर में कभी – कमी नहीं आती। ये अपने आप में विश्व रिकार्ड है – और गिनीज बुक में दर्ज है। लगभग 450 साल से ही ये सेवा जारी है। सामान्य तौर पर लंगर में लगने वाली सामग्री 7000 किलो आटा – 1200 किलो चावल – 1300 किलो दाल – 500 किलो शुद्ध देसी घी – रोज़ाना इस्तेमाल होता है। यह आंकड़ा विशेष मौकों एवं छुट्टियों के दिनों में दोगुना भी हो जाता है।
इस रसोई घर में लंगर बनाने के लिए तरह – तरह की – तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे लकड़ी का – LPG गैस का – और इलेक्ट्रॉनिक रोटी बनाने की मशीन का।
अनुमानतः 100 सिलिंडर एवं 500 किलो लकड़ी प्रति दिन इस्तेमाल होती है।वं तकरीबन 450 सेवादार इस निशुल्क रसोई घर में सेवा करते है। जिसमे अन्य बाहर से आयी संगत भी सेवा में लग जाती है – जिसकी संख्या सैंकड़ों में होती है। इस सेवा के अंतर्गत सब्जियें साफ़ करना – उन्हें छिलना – काटना व धोना – इसके साथ ही हजारो श्रद्धालुओं द्वारा – जुठे बर्तनों के सफाई की सेवा – बड़े चाव व श्रद्धा से की जाती है।
इस रसोई घर का सालाना बजट हजारों करोड़ो में है। सिक्ख गुरुओं का ये पहला सन्देश है की – प्रथ्वी पे कोई भी जिव की आत्मा भूखी ना रहे – पहले भूखे जीव को भोजन – पश्चात भजन। इस महान प्रेरणादायी लंगर सेवा और सन्देश को – देश भर में सब को बताये – जो वास्तव में तारीफ़ के काबिल है।