अलकनंदा नदी के किनारे बद्रीनाथ धाम में स्थित है बद्रीनाथ (बद्रीनारायण) मंदिर | प्रमुख चारो धामों में से एक बद्रीविशाल के इस मंदिर में भगवान विष्णु के बद्रीनाथ रूप की पूजा होती है | यह पंच बद्री में से एक बद्री भी है |
बद्रीनाथ मंदिर समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है | बद्रीनाथ भगवान विष्णु की तपस्थली है और यह 2000 वर्षों से एक प्रमुख तीर्थ स्थान रहा है | आठवीं शताब्दी में संत आदि शंकराचार्य ने यहाँ बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण करवाया |
भगवान बद्रीविशाल की चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में शालीग्रामशिला मूर्ति की पूजा बद्रीनाथ मंदिर में होती है | आदि पुराणों के अनुसार प्रस्तुर बद्रीविशाल की मूर्ति स्वयं देवताओं ने नारदकुंड से निकालकर यहाँ स्तापित की और पूजा अर्चना और तपस्या की | जब बौद्ध धर्म के अनुयायी इस स्थान पर आये तो उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति समझ कर इसकी पूजा शुरू कर दी | शंकराचार्य की सनातन धर्म प्रचार यात्रा के दौरान बौद्ध धर्म के अनुयायी तिब्बत जाते हुए इस मूर्ति को अलकनंदा नदी में डाल कर चले गये | आदिगुरू शंकराचार्य ने इस मूर्ति को निकालकर पुनः स्थापित किया और बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण करवाया | समय बीतने पर यह मूर्ति पुनः स्थान्तरित हो गयी | रामानुजाचार्य ने पुनः इसे तप्तकुंड से निकालकर इसकी स्थापना की |
चारों धामों में प्रमुख बद्रीनाथ धाम का हिन्दू धर्म में बहुत बड़ा महत्त्व है | भगवान नर-नारायण विग्रह की पूजा यहाँ होती है | मंदिर में एक अखंड दीप जलता है जो अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है | सभी श्रद्धालु यहाँ स्थित तप्तकुंड में स्नान करने के बाद भगवान बद्रीविशाल के दर्शन करते हैं | मंदिर में मिश्री, गिरी का गोला, चने की कच्ची दाल और वनतुलसी की माला आदि प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है |
लोक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान विष्णु ध्यान योग के लिए स्थान खोजते हुए अलकनंदा नदी के तट पर पहुंचे | भगवान शिव की इस केदार भूमि में स्थान पाने के लिए बाल रूप में अवतरित हुए | वह स्थान जहाँ भगवान अवतरित हुए उसे अब चरणपादुका स्थल के नाम से जाना जाता है |
बाल रूप में अवतरण कर भगवान विष्णु जोर जोर से क्रंदन करने लगे | उनके रोने की आवाज सुनकर भगवन शिव और माता पार्वती उनके पास आकर उनसे रोने का कारण पूछा | तब बालक रुपी भगवान विष्णु ने केदार भूमि में उस स्थान को अपने ध्यानयोग हेत मांग लिया | इसके पश्चात जब भगवान विष्णु तपस्या में लीन थे तब बहुत अधिक हिमपात होने लगा | भगवान पुरे बर्फ से ढक गये | तब माता लक्ष्मी ने भगवान के समीप खड़े होकर एक बेर (बद्री) के वृक्ष का रूप ले लिया | बेर वृक्ष रुपी माता ने लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को धुप, वर्षा और बर्फ से बचाए रखा | वर्षो तक भगवन और माता की ये तपस्या चलती रही | तप पूर्ण करने पर जब भगवान विष्णु ने बर्फ से ढकी माता देखि तो कहा “हे देवी ! आपने भी मेरे बराबर तप किया है | आज से ये स्थान बद्री के नाथ यानी बद्रीनाथ के नाम से जाना जायेगा और इस स्थान पर हम दोनों की पूजा होगी |
भगवान विष्णु के तप स्थल को आज तप्तकुंड कहते हैं और तप के प्रभाव से कुंड का पानी हमेशा गरम रहता है |
बद्रीनाथ मंदिर परिसर बहुत ही आकर्षक और सुन्दर है | समस्त मंदिर तीन भागों में विभाजित है | गर्भगृह, दर्शनमंडप और सभामंडप | परिसर में कुल १५ मूर्तियाँ हैं जिसमे प्रमुख भगवान बद्रीविशाल की 1 मीटर काले पत्थर की प्रतिमा मंदिर में विराजमान है | उनके बगल में कुबेर लक्ष्मी और नारायण की मूर्तियाँ स्थापित हैं |
बद्रीनाथ मंदिर प्रत्येक वर्ष अप्रैल – मई माह में श्रधालुओं के लिए खुलता है और अक्टूबर – नवम्बर में शीतकाल के लिए बंद हो जाता है | बद्रीनाथ मंदिर के खुलने का दिन पुजारी बसंत पंचमी को पंचांग गणना के बाद बताते हैं | हर वर्ष अक्षय तृतीय के बाद ही बद्रीनाथ मंदिर खुलता है | बद्रीनाथ मंदिर के बंद होने की तिथि विजयदशमी को निर्धारित की जाती है |
बद्रीनाथ मंदिर सुबह 7 बजे से सायं काल 7 बजे तक श्रधालुओं के लिए खुलता है | मंदिर में मुख्या पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य का होता है |
तप्त-कुंड, ब्रह्म कपाल, शेषनेत्र, चरणपादुका, माता मूर्ति मंदिर, माणा गाँव, वेदव्यास गुफा, गणेश गुफा, भीम पुल, वसुधारा, लक्ष्मी वन, संतोपंथ, अलकापुरी, सरस्वती नदी |