वैष्णो देवी का मंदिर, 5,200 फीट की ऊंचाई पर है और जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में कटरा नगर से लगभग 14 किमी दूर त्रिकूट पर्वत पर गुफा में स्थित है। माता वैष्णो देवी का यह मंदिर उत्तरी भारत में हिंदुओं के सबसे प्रसिद्ध पूजनीय पवित्र स्थलों में से एक है माता वैष्णो देवी गुफा मंदिर केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया का एक सबसे व्यस्त तीर्थस्थल है। जहाँ दूर दूर से लाखों श्रद्धालु माँ के दर्शन के लिए आते हैं यात्रा में भक्त अपने हाथो पर माँ की ध्वजा और सिर पर माँ की चुनरी बांधकर मैया के जयकारे लगाकर सम्पूर्ण मार्ग को आस्था से भर देते है मंदिर लगभग 98 मीटर लम्बा है।यह माना जाता है की इस मंदिर का निर्माण करीबन 700 साल पहले पंडित श्रीधर द्वारा हुआ था।
माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए आज के समय में जिस रास्ते का प्रयोग किया जाता है, वह देवी के भवन का प्राकृतिक रास्ता नहीं है। इस रास्ते को श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए 1977 में बनाया गया था। आज के समय में इसी रास्ते से होकर श्रद्धालु माता के दरबार तक पहुंचते हैं
माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए बहुत कम ही भक्तों को प्राचीन गुफा से माता के भवन में प्रवेश का सौभाग्य मिल पाता है। क्यों कि यहां पर नियम है कि जब दस हजार से कम श्रद्धालु होगें तभी प्राचीन गुफा का द्वार खोला जाता है। गुफा की लंबाई 15 फुट है, गुफा के अन्दर एक चबूतरा है, जिसे ‘मां का आसन’ कहा जाता है। गुफा के पूजन स्थान को ‘गर्भजून’ कहते हैं।माता वैष्णो देवी के दरबार में गुफा का बहुत महत्व है।
इस गुफा में प्राकृतिक रूप से तीन पिण्डी बनी हुई। यह पिण्डी (बायें) देवी सरस्वती, (मध्य), देवी लक्ष्मी और (दाएं) देवी काली की है। भक्तों को इन्ही पिण्डियों के दर्शन होते हैं। लेकिन माता वैष्णो की यहां कोई पिण्डी नहीं है। माता वैष्णो यहां अदृश रूप में मौजूद हैं फिर भी यह स्थान वैष्णो देवी तीर्थ कहलता है। तीनों पिंड के सम्मिलित रूप को ही माँ वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है।
सुबह और शाम आरती होती है। मान्यता है कि आरती मे सभी देवी देवता गर्भगृह मे विदमान होते है आरती सुबह सूर्योदय से पहले शुरू होती है और शाम को सूर्यास्त से शुरू होती है। आरती की शुरुआत से पहले, पुजारी आतम पुजा शुद्धि” (आत्म-शुद्धिकरण) करते हैं। उसके बाद देवी को स्नान कर दिया जाता है इसके बाद पंचमृता पूजा प्रक्रिया घी, दूध, पानी, चीनी और शहद के साथ देवी स्नान की प्रक्रिया अगला चरण है, देवी को साड़ी, चुन्नी या चोल गहने से सजाया जाता है। पुजारी श्लोक और मंत्र के देवी के माथे पर पवित्र तिलक के साथ दिव्य ज्योति को जलाया जाता है देवी की आरती की जाती है।
मंदिर में आरती में मौजूद सदस्य पुजारी,और शाइन बोर्ड के वरिष्ठ सदस्यों को अंदर की अनुमति है। पूरी प्रक्रिया के बाद, थाल जिसमें ‘आरती’ में दीप और अन्य अन्य चीजें शामिल होती हैं, को पवित्र गुफा के मुंह से बाहर लाया जाता है, जहां यात्रियों की उपस्थिति में देवी की आरती का प्रदर्शन किया जाता है। पवित्र गुफा के बाहर आरती खत्म हो जाने के बाद, पुजारी द्वारा प्रसाद और चरमृत जल यात्रियों को वितरित किया जाता है। आरती की पूरी प्रक्रिया मे लगभग दो घंटे लगते हैं।
इस मंदिर और कटरा के नज़दीकी शहर के बीच की दूरी केवल तीन किलोमीटर है।
बाण गंगा से करीब 1.5 किलोमीटर दूर पादूका मंदिर का स्थान 3380 फीट ऊँचाई पर
भवन से 3 किमी दूर ‘भैरवनाथ का मंदिर’ है। कहा जाता है माता का बरदान है कि भैरवनाथ के दर्शन बिना मेरी यात्रा सम्पूर्ण नही होगी आज भी श्रदालु भैरवनाथ के दर्शन को अवशय जाते हैं।भवन से भैरवनाथ मंदिर की चढ़ाई हेतु किराए पर पिट्ठू, पालकी व घोड़े की सुविधा भी उपलब्ध है।
यह कदम ट्रैक सौंदर्यीकरण, कदम रीमोडलिंग और अन्य शौचालयों और बारिश आश्रयों के निर्माण सहित अन्य चीजों के प्रसार के माध्यम से किया गया है। आजकल पूरे ट्रैक पर उच्च दबाव सोडियम भाप लैंप स्थापित किया गया है।शौचालयों और पानी की आपूर्ति के निर्माण ने तीर्थयात्रियों के लिए कई अतिरिक्त सुविधा लाई है। पैक किए गए भोजन सहित पर्याप्त और सस्ती पेय विभिन्न प्रकार के बिस्कुट और स्नैक्स जैसे उपलब्ध कराए जाते हैं। ओम रिफ्रेशमेंट यूनिट की खाद्य सामग्री के विभिन्न प्रकार की पेशकश। मंदिर परिसर को सुशोभित करने के लिए संगमरमर टाइलें लगी हैं। भैरों मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को अब कोई परेशानी नहीं है।
स्थान | कटरा से दूरी |
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बाणगंगा | 1 किलोमीटर |
चरण पादुका | 2.5 किलोमीटर |
अर्धकुमारी | 6 किलोमीटर |
हिमकोटि | 8.5 कि.मी. |
सांझीछत | 9.5 किलोमीटर |
भवन | 13.0 किमी |
भैरन घाटी (वाया भवन) | 14.5 किमी |
Vesnodevi yatrani vash buking kese kare
Sir mujhe 12 january ko vaishno mata mandir jana hai koi pareshani to nahi hogi
Helicopter se ane janeka up and down way konsha he