ऐसा माना जाता है कि 5000 वर्ष पहले, द्वारका श्री कृष्ण की नगरी थी, जिसे भगवान विश्वकर्मा ने बनाया था, पहले तो मथुरा ही भगवान श्री कृष्ण की राजधानी थी। पर मथुरा छोड़ने के बाद उन्होंने द्वारका बसाई थी।जो महाभारत में भी वर्णित हैं । 36 वर्ष राज्य करने के बाद श्री कृष्ण की मृत्यु के बाद द्वारिका के समुद्र में डूब जाने और यादव कुलों के नष्ट हो जाने के बाद यदुओं की आपसी लड़ाई में जीवित बच गए कृष्ण के प्रपौत्र वज्र अथवा वज्रनाभ द्वारिका के यदुवंश के अंतिम शासक थे।
मान्यता है कि इस स्थान पर मूल मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के बड़े परपौत्र वज्रनाभ ने करवाया था। कालांतर में मंदिर का विस्तार एवं जीर्णोद्धार होता रहा। मंदिर को वर्तमान स्वरूप 16वीं शताब्दी में प्राप्त हुआ था। भगवान श्री कृष्ण की द्वारिका वर्तमान मंदिर से 9 किलोमीटर पानी के अंदर 100 मीटर नीचे डुबी हुई हैं ।द्वारिका के समुद्र में डूबने पर अर्जुन द्वारिका गए और वज्र तथा शेष बची यादव महिलाओं को हस्तिनापुर ले गए। कृष्ण के प्रपौत्र वज्र को हस्तिनापुर में मथुरा का राजा घोषित किया। वज्रनाभ के नाम से ही मथुरा क्षेत्र को ब्रजमंडल कहा जाता है।
इस शहर के चारों ओर बहुत ही लंबी दीवार थी जिसमें कई द्वार थे। कई द्वारों का शहर होने के कारण ही इसका नाम द्वारिका पड़ा। ज्ञात हो कि शब्द द्वारका “द्वार” शब्द से निकला है |
मान्यता है, की यही पर भगवान् श्रीकृष्ण और सुदामा की भेंट हुआ थी, इसका नाम तो भेट द्वारका था बाद में कहते कहते बेट द्वारका पड़ गया ।
कृष्ण ने राजा कंस का वध कर दिया तो कंस के श्वसुर मगधपति जरासंध ने कृष्ण और यदुओं का नामोनिशान मिटा देने की ठान रखी थी। वह मथुरा और यादवों पर बारंबार आक्रमण करता था। उसके कई मलेच्छ और यवनी मित्र राजा थे। अंतत: यादवों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कृष्ण ने मथुरा को छोड़ने का निर्णय लिया। विनता के पुत्र गरूड़ की सलाह एवं ककुद्मी के आमंत्रण पर कृष्ण अपने 18 नए कुल-बंधुओं के साथ द्वारिका आ गए । वर्तमान द्वारिका नगर कुशस्थली के रूप में पहले से ही विद्यमान थी, कृष्ण ने इसी उजाड़ हो चुकी नगरी को पुनः बसाया।
Dwarka ka nirman karne ke liye shree krishna ne gujarat side hi kyu choose ki
मेरा प्रश्न हैं – प्रभू विश्वकर्मा भगवान ने जो श्री कृष्ण के लिये नगरी बणाई उस नगरीका द्वारका नाम क्यू रखा