श्री द्वारकाधीश मुख्य मंदिर गोमती नदी के संगम पर बना हुआ है , जो अरब सागर से मिलती है। नगर के एक हिस्से के चारों ओर चहारदीवारी है।जिसके दो मुख्य द्धार है। इसके भीतर ही सारे बड़े-बड़े मन्दिर है। दक्षिण में स्थित स्वर्ग द्वार, प्रमुख द्वार हैं। जिससे श्रद्धालु अंदर आते है। यह द्वार मुख्य बाजार से होते हुए गोमती नदी की ओर जाता है। और उत्तर दिशा में स्थित मोक्ष द्वार दूसरा द्वार हैं। जिससे दर्शन कर बाहर निकलते हैं |
द्वारकाधीश मुख्य मंदिर की वास्तुकला
पांच मंजिला बना है। मंदिर चालुक्य शैली मे एक शानदार रथ के आकार का में बना है। मंदिर का सबसे ऊंचा शिखर 51.8 मीटर ऊंचा है। 72 स्तंभों पर खड़ा है, मंदिर लगभग 100 फीट ऊँची बलुआही पत्थर से बना हुआ हैं। यह शिल्पकला और वास्तुकला का बेजोड़ नमूना हैं । मंदिर के दो शिखर है,निज शिखर के अंदर गर्भगृह में चाँदी के सिंहासन पर भगवान कृष्ण की श्यामवर्णी चतुर्भुजी प्रतिमा लगभग सवा दो फीट ऊँची विराजमान है। उनके चारों हाथ में शंख, चक्र, गदा और कमल के फूल हैं। यहाँ इन्हें ‘रणछोड़ जी’ भी कहा जाता है। मंदिर में वासुदेव, देवकी, बलराम, रेवती, सुभद्रा, रुक्मणी देवी, जमवावती देवी, सत्यभामा देवी, की मूर्तियाँ हैं। बहुमूल्य अलंकरणों तथा सुंदर वेशभूषा से सजी प्रतिमा हर किसी का मन मोह लेती है।
मंदिर के शिखर शिखर पर क़रीब 52 गज के कपड़े से बना विशाल झंडा तक़रीबन 10 किमी दूर तक देखा जा सकता है। ध्वज दिन मे पाँच उतारने और चढाने का विधान है। मंदिर के ऊपर स्थित ध्वज सूर्य और चंद्रमा को दर्शाता है, द्वारकाधीश का विग्रह जिस मन्दिर में स्थापित है उसके अलावा 15 अन्य छोटे मन्दिर और भी है, आदि शंकराचार्य द्वारा करीब 500 इसा पूर्व स्थापित चार पीठों में से शारदा पीठ उसी परिसर में साथ में ही स्थित है, इस पीठ के वर्तमान शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती है,