धाम यात्रा

अमरनाथ यात्रा के मार्ग में दर्शनीय स्थल

उधमपुर 

यहॉ के सुंदररानी मंदिर में विशाल चटृानों पर निर्मित शिवलिंग, यहॉ की सुंदरता मे चार चॉद लगा देता है।

पटनीटॅाप

हिल स्टेशन में खान-पान के साथ-साथ सैलानियों के घुमने के लिए दर्शनीय स्थान है। उॅंचें उॅंचे पेड़ व पहाड़ की गोद से निकलती हुयी झरने व नदी देख स्वतः हीं यहॉ स्नान करने का मन करता है। उपर पहाड़ नीचे खाई रामबन, बनिहाल की सुन्दर घाटियाँ पर्वत झीलें पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।

काजीकुंड

में जलपान और विश्राम की उत्म व्यवस्था हैं । श्रदालु यहाँ प्रकृति की गोद में जलपान का आन्नद उठाते है। यहॉं श्रदालुओं की सेवा करते सेवादार आपको एहसास नहीं होने देंगे की आप अपने घर से सैकड़ो मील दुर हैं। कहते है भगवान शिव के भक्तो की सेवा करना शिव के सेवा करने के समान हैं और भला शिव की सेवा करना कोई क्यों छोडेंगा ? यही कारण है कि सेवादार तन-मन धन से यात्रियों की सेवा करते है। बस पटनीटॉप से रामबन: बनिहाल: होते हुए आगे बढेगी, मौसम के मिजाज भी बदलते रहेंगे |

जवाहर सुरंग – यह सुरंग कश्‍मीर का प्रवेश द्वारा है। यहॉं एक नहीं बल्कि दो सुरंग बराबर लम्‍बाई के है, जो जर्मन इंजीनियर के सहयोग से 22 दिसम्‍बंर 1956 में शुरू हुआ। उस समय यह सुरंग एशिया का सबसे लम्‍बा सुरंग था। पीर पुंजाल के पहाड़ों के तलहटी में बना सुरंग बनिहाल को काजीगुंड से जोड़ता है, यहीं सुरंग कश्‍मीर को पूरे भारतवर्ष से जोड़ती है। सुरंग की लम्‍बाई 2.5 किलामीटर है आगे बस अनंतनाग पहुँचती हैं |

अनंतनाग 

सेवादरों द्वारा यहाँ पर यात्रियों के विश्राम की उतम वयवस्था की जाती हैं। यहाँ के सेवादार निःस्वार्थ तन मन धन से यात्रियों की सेवा करते हैं। अनंतनाग से दो रास्ते निकलते है। एक श्रीनगर होते हुए बालताल को जाता है और दूसरा पहलगाम को जाता है|

नुनवान

नुनवान में यात्री बेस केंप बनता है। पहली रात भक्त यहीं बिताते हैं नुनवान में सभी यात्रियों के साथ चेक पोस्‍ट से गुजर कर अमरनाथ के श्राइनबोर्ड के कैंप के भी चेक पोस्‍ट से गुजरते हुए हैं वहॉं हटों के अलावा टेंट भी किराए पर मिलते हैं, सामान वहीं रखे और लंगर में खाना खाने पहुँचे। वहॉं समयानुसार चाय, नास्‍ते एवं खाने का प्रबंध रहता है। देश के लगभग सभी व्‍यंजन यहॉं पर अमरनाथ यात्रा के दौरान उपलब्‍ध होते है। व्रत के लिए फलाहार एवं मधुमेय के रोगियों के लिए भी शुगर फ्री खाने का प्रबंध है।

चंदनबाडी

यहाँ की सुंदरता के अदभुत नजारें हैं, ऊँचे- ऊँचे पर्वत शिखर ठंडी-ठंडी हवाएँ मन को शीतल कर देती है चंदनबाड़ी से पिस्सू टाप तक 3 किमी की खड़ी चढाई है । आगे का रास्‍ता यात्री अपने इच्‍छानुसार पैदल,घोड़ा, पिट्ठू, पालकी आदि से करते है।

नीलगंगा

एक बार भगवान शिव माता पार्वती के साथ र्कीडा कर रहे थे। उनका मुख माता पार्वती के नेत्रों से स्पर्श होने के कारण काला पड गया तो उन्होंने अपना मुख नीलगंगा में धोया था। तभी से अंजन के प्रभाव से इस नदी के जल का रंग नीला पड गया। जो श्रद्धालु सच्चे मन से नीलगंगा में स्नान करते है उनको शिवधाम की प्राप्ति होती है। चंदनबाड़ी से आगे इसी नदी पर बर्फ का यह पुल हमेशा सलामत रहता है। यह समुद्रतल से 11120 फ़ीट ऊंचाई पर है। इसके आगे पिस्सु घाटी पहुँचते हैं।

पिस्सु टॉप

मान्यता है कि एक बार भगवान शिव पिस्सु घाटी पर विश्राम कर रहे थे यह देख देवता व राक्षस शिव के दर्शन के लिए व्याकुल हो उठे। पहले कौन शिव जी का दर्शन करेगा, इस पर युद्ध छिड गया और देवताओं की संख्या कम हाने के कारण वे हारने लगे। देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की।भगवान शिव के स्तुति के कारण उनमें नवीन शक्ति का संचार हुआ जिससे उन्होनें सभी राक्षसों को मार गिराया और उनकी हडियों को पीस पीस कर चूरा बनाकर उसका ढेर लगा दिया। इसी लिए यहॉ का नाम पिस्सु टॉप पडा |

पिस्सु टॉप की ऊचाई समुद्री तल से 11, 500 फीट है। पिस्सुटॉप की गगनचुम्बी चढाई पर एक-एक कदम संभाल के रखना पडता है। खडी चढाई यही से शुरू हो जाती है, रास्ता अति दुर्गम होने के साथ-साथ टेढ़ी मेढ़ी सर्पकार, पथरीला, चक्रनुमा तो कहीं उबड-खाबड है कहीं ऑक्‍सीजन की कमी के कारण यात्रियों को सॉंस लेने में थोड़ी बहुत परेशानी आती है, जो सामान्‍यत: प्राथमिक उपचार से दूर हो जाती है। रास्‍ते में मेडीकल की सुविधाएं उपलब्‍ध हैं। रास्ते में बम बम भोले और ऊँ नमः शिवाय का सुमिरन सुनकर मन भक्तिमय और शक्तिदायक हो जाता है और श्रद्धालु इस दुरगम चढाई को पार कर लेते है अगला पड़ाव शेषनाग है।

शेषनाग

शेषनाग की समुद्री तल से ऊॅचाई 12, 500 फीट है। यह अत्यंत रमणीय स्थान है। प्रकृति के अनमोल नजारें ऊँचे ऊँचे पर्वतों पर बादलों ठहराव,पर्वतमालाओं के बीच शेषनाग झील का सौंदर्य अद्भुत है नीले पानी की इस झील में झांककर यह भ्रम हो उठता है कि कहीं आसमान तो इस झील में नहीं उतर आया। यह झील करीब डेढ़ किलोमीटर लम्बाई में फैली है। सर्दी के बावजूद भक्त झील में स्नान करते हैं। किंवदंतियों के मुताबिक शेषनाग झील में शेषनाग का वास है और चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील के बाहर दर्शन देते हैं, लेकिन यह दर्शन खुशनसीबों को ही नसीब होते हैं। यहाँ रात्रि विश्राम करते हैं यहॉं से यात्रियों का जत्‍था दूसरे दिन खड़ी ढलान को पार करते हुए वारबल एवं महागुनास टॉप की खड़ी चढ़ाई भी चढ़ते हैं (जो कि इस सफर का सबसे ऊँचा स्‍थान है, जिसकी ऊँचाई समुद्रतल से करीब 14500 फीट है) |

क्यूं पड़ा शेषनाग नाम

मान्यता है कि एक बलवान राक्षस इस स्थान पर रहता था, भगवान शिव ने उस राक्षस को दीर्धायु का वरदान दिया था। यह राक्षस पर्वत की तरह आकृति और महान बलशाली दुष्ट देवताओं और पृथ्वी वासियों पर घोर अत्याचार करता था। जिससे देवता तंग आकर भगवान शिव के पास गये देवताओं के आग्रह पर भगवान शिव ने उन्हें भगवन विष्णु के पास जाने को कहा। भगवान विष्णु ने पाताल लोक से शेषनाग जी को बुलाया और शेषनाग ने अपने अद्वितीय शक्ति से उस राक्षस का वध किया। दैत्यों पर शेषनाग जी की इसी जीत के कारण ही इस जगह का नाम शेषनाग पड़ा।

महागुण स्टॉप

समुद्री तल से 14, 800 फिट ऊॅचाई पर स्थित है। इसे गणेश टॉप भी कहते है । यहॉ पर हिमनदियों तथा हिम पर्वतों का बडा अदभूत संगम है। महागुण से 9.6 किमी पर पंजतरणी है। यात्रा का अगला पडाव आता हैं पंचतरिणी ।

पंचतरणी

शेषनाग से 14 कि.मी. है। पंचतरणी का सारा रास्ता उतराई का है। यहां पांच छोटी-छोटी नदियों बहने के कारण ही इसका नाम पंचतरणी पड़ा। यह जगह चारों तरफ से पहाड़ों की ऊंची-ऊंची चोटियों से ढका है। ऊंचाई की वजह से ठंड भी बहुत ज़्यादा होती है। ऑक्सीजन की कमी की वजह से तीर्थयात्रियों को यहां सुरक्षा के इंतज़ाम करने पड़ते हैं। पंचतरिणी में रात्रि विश्राम कर श्रद्धालु सुबह से ही पवित्रगुफा की ओर बाबा बर्फानी के दर्शनों को चल देते हैं जो कि लगभग 8 कि.मी है। बर्फ के बने रास्‍तों पर डंडे के सहारे चलना एक अलग ही आनंद का एहसास कराता है। यहाँ का मौसम कब बिगड जाये पता नहीं चलता ।भुस्खलन, हिमपात यहाँ होते रहतें है। सुरक्षा के लिए जम्मू कश्मीर टूरिज्म बोर्ड तथा अमरनाथ श्राईन बोर्ड द्वारा यात्रियों की सहायता के लिए जगह जगह कैम्प लगाये हुए हैं। यात्रियो को हमारी सलाह है की वे अपनें जरूरत का समान और सुरक्षा के पुख्ता इन्तजाम कर के ही यात्रा करें।

संगम टॉप

समुद्र तल सें 13, 500 फिट की ऊँचाई पर स्थित हैं। संगम टॉप से अमरनाथ की यात्रा 3 किमी रह जाती हैं। पहलगाम और बालटन से होकर आने वाले मार्गो का यह संगम स्थल हैं। इसलिए इसे संगम टॉप कहते है। प्रकृति का अदभूत नजारा कहीं धूप, कहीं हिम पवनें, ऊँचें शिखर, नदियाँ एक लुभावना दृष्य तैयार करते हैं जिससें यात्रियों के मन में नई स्फूर्ति का संचार होता हैं। बम बम भेाले ऊँ नमः शिवाय का गुणगान करते हुए श्रद्धालु अमरनाथ गुफा पहुंचते है। अमरनाथ गुफा के नीचे से ही अमरगंगा का प्रवाह होता है। यात्री उसमें स्नान करके गुफा में जाते हैं। सवारी के घोड़े अधिकतर एक या आधे मील दूर ही रुक जाते हैं।

हिमलिंग दर्शन

प्राकृतिक हिम से बनने के कारण ही इसे स्वयंभू ‘हिमानी शिवलिंग’ या ‘बर्फ़ानी बाबा’ भी कहा जाता है। गुफा में जगह-जगह बूंद-बूंद जल टपकता है. ऐसा माना जाता है कि गुफा के ऊपर पर्वत पर श्रीराम कुंड है और ये जल उसी कुंड से टपकता है। जल की एक-एक बूंद गुफा में शिवलिंग पर गिरती है और बाबा बर्फानी बनते हैं। मान्यता है कि रक्षाबंधन के दिन भगवान भोले बाबा इस गुफा में पधारते हैं, इसलिए इस दिन छड़ी मुबारक हिम शिवलिंग के पास स्थापित की जाती है।चन्द्रमा के बढने घटने के साथ साथ इस बर्फ का आकार भी घटता बढता रहता हैं। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार मे आ जाता हैं। और अमावस्या तक धीरे धीरे छोटा होता जाता हैं। अमरनाथ के हिमलिंग में एक अद्भुत बात यह है कि वह हिमलिंग तथा हिम चबूतरा ठोस पक्की बर्फ का होता है, जबकि गुफा के बाहर मीलों तक सर्वत्र कच्ची बर्फ ही मिलती है। गुफा के पास एक स्थान पर सफेद भस्म जैसी मिट्टी निकलती है,जिसे यात्री प्रसाद स्वरूप लाते हैं।गुफा में कबूतर भी दिखायी देते हैं। कबूतरों को शिव-पार्वती का रूप समझा जाता है। श्रावण पूर्णिमा के दिन शिवलिंग हर साल अलग-अलग ऊंचाई पर होता है। आमतौर पर ये 6-7 से 18-20 फुट ऊंचा तक पोहचता है।

प्राकृतिक रूप से प्रति वर्ष बनने वाले हिमशिवलिंग में इतनी अधिक चमक विद्यमान होती है कि देखने वालों की आंखों को चकाचौंध कर देती है। विज्ञान के अनुसार बर्फ़ को जमने के लिए क़रीब शून्य डिग्री तापमान ज़रूरी है। किंतु अमरनाथ यात्रा हर साल जून-जुलाई में शुरू होती है। तब इतना कम तापमान संभव नहीं होता।

अमरावती पावन स्नान

अमरनाथ के दर्शन से पूर्व अमरावती नदी में स्नान करना पावन माना जाता हैं। एक बार समस्त देवता जीवन मृत्यु से परेशान होकर भगवान शिव से प्रार्थना की कि हमे जन्म मरण के चक्र से बचाए जिसके लिए भगवान शिव नें सिर पर शुभोसित चन्द्रमा को अपनी सुक्ष्म शक्ति से निचोडा ओर मोक्ष किया जिससे अमृत की जो धारा निकली वहीं अमरावती है। इसमे पवित्र मन से स्नान करने से सारी मनोकामनाये पूर्ण हो जाती हैं।


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